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'हिन्दी के महावीर प्रबन्ध-काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन' नामक शोध-प्रबन्ध डॉ. दिव्यगुणाश्री का 1998 ई. में अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ था । हिन्दी में भगवान महावीर के चरित्र विषयक आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों की विशिष्ट परम्परा का यह अनुशीलन प्रथम बार प्रस्तुत किया जा रहा है। आधुनिक हिन्दी में प्रकाशित भगवान महावीर चरित्र सम्बन्धी छह महाकाव्यों का चयन मैंने मूल आधार ग्रन्थों के रूप में किया है। उन आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर के चरित्र-चित्रण का अनुशीलन इस पुस्तक में किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक मूल में एक शोध-प्रबन्ध के रूप में लिखी गयी थी। उसकी सहर सामग्री का यह प्रकाशन है। प्रबन्ध लेखन की कालावधि में विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं ग्रन्थालयों, विशेषरूप से उज्जैन के जैन ग्रन्यभण्डार एवं इन्दौर के जैन शोध संस्थान एवं पार्श्वनाथ शोध संस्थान, वाराणसी के अधिकारियों के प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूँ। मैं उन ऋषियों, महर्षियों एवं विद्वानों के प्रति अपनी आदरांजलि समर्पित करती हूँ, जिनके विचारों का मैंने इस प्रबन्ध में निःसंकोच भाव से उपयोग किया है।
मैं परिवार के समस्त सदस्यों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ, खास कर श्वसुर घ. श्री. गणपतरावजी एवं सौ. लीलावती, ध श्री नेमिनाथजी एवं सौ. पद्मावती तथा आदरणीया श्रीमती रत्नाबाई, जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ लेखन में मुझे सदैव प्रोत्साहन दिया है। मेरे पति गुणवन्तजी एवं मेरे पिताजी सांगली के प्राचार्य नेमिनाथ गुण्डेजी एवं माताजी देवयानी तथा शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर के साहू शोध केन्द्र के मानद संचालक डॉ. विलास संगवेजी की मैं ऋणी रहूँगी, जिन्होंने शोधकार्य में निरन्तर प्रेरणा देकर मुझे आत्मबल प्रदान किया है। मेरी बेटी पूजा एवं बेटे पारस ने प्रबन्ध की लेखन- कालावधि में मुझे जो सहयोग दिया है, उसे मैं कभी भूल नहीं सकूँगी। प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों से प्राप्त सहयोग के लिए मैं अपने सभी हितैषियों के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ ।
प्रस्तुत पुस्तक को प्रकाशित करने में जो आत्मीयता और सहृदयता भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्धकों ने दिखायी, उसके लिए मैं उनके प्रति हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ ।
यह एक संयोग तथा परम सन्तोष की बात रही हैं कि इस पुस्तक का प्रकाशन भगवान महावीर की छब्बीसवीं जन्मशताब्दी जयन्ती समारोह के वर्ष के अवसर पर हो रहा है। मुझे आशा है कि प्रस्तुत अनुशीलन स्वान्तः सुखाय होते हुए भी बहुजनहिताय सहायक होगा।
- सुषमा गुणवन्त रोटे
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