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________________ में लिखी गयी है, जिसका अत्यन्त महत्त्व है। मूलसूत्र साहित्य-मूलसूत्रों में साधु-जीवन के मूलभूत नियमों का विवेचन है, अतः इन्हें मूलसूत्र कहा गया है। 'उत्तरग्झयण' (उत्तराध्ययन), आवस्सय (आवश्यक), दसवालिय (दशवकालिक), 'पिण्डनियुत्ति' (पिण्डनियुक्ति)-इन चारों मूलसूत्रों में महावीर के जीवन विषयक विविध वृत्त प्राप्त होते हैं। 'उत्तराध्ययन में महावीर के अन्तिम चातुर्मास के समय के उत्तर संगृहीत हैं। इस ग्रन्थ का 'द्रुमपुष्पिका' नामक दसवाँ अध्ययन स्वयं महावीर ने कहा है। तेईसवें अध्ययन में पार्श्वनाथ के शिष्य केशीकुमार और महावीर के शिष्य गौतम के ऐतिहासिक संवाद का उल्लेख है, जिसमें महावीर को सर्वलोकविख्यात धर्मतीर्थ का प्रवर्तक कहा गया है। महावीर के पाँच महाव्रत और अचेल (निम्रन्थ) धर्म का इसमें विवरण उपलब्ध होता है। निज्जुत्ति (नियुक्ति) साहित्य-सूत्र में निश्चय किया हुआ अर्थ जिसमें निबद्ध हो उसे नियुक्ति कहा जाता है। आगमों पर आर्या छन्द में प्राकृत भाषाओं में लिखा हुआ विवेचन नियुक्ति है। 'आवश्यक नियुक्ति' में महावीर कथा के प्रसंग हैं। उनके गर्भ से निर्वाण तक की मुख्य-मुख्य घटनाओं का उल्लेख इसमें हुआ है। __ भास (भाष्य) साहित्य-भाष्य की रचना प्राकृत गाथाओं में की गयी है। इसका समय चौथी, पाँचवीं शताब्दी माना जाता है । कल्पसूत्र, उत्तराध्ययन, आवश्यक नियुक्ति, दशबैकालिक सूत्र आदि ग्रन्धों पर भाष्य उपलब्ध हैं। इनमें महावीर विषयक प्रसंग आये हैं। चुपिण (चूर्णि) साहित्य-चर्णिवों की रचना गद्य में की गयी है। इनका समय ई. की छठी-सातवीं शताब्दी है। उत्तराध्ययन, आचारांग, आवश्यक नियुक्ति आदि पर चूर्णियाँ लिखो गयी हैं। उनमें महावीर-चरित्र के पर्याप्त प्रसंग आये हैं। आवश्यकचूर्णि में महावीर के जन्म, डीक्षा उपसर्गों तथा देश-देशान्तर में विहार का ब्योरेवार (विस्तार) वर्णन है जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। टीका साहित्य-आगमों में मानवीय आदर्श की जो विचारधाराएँ हैं, टीकाएँ उनका व्यापक एवं विशद विवरण प्रस्तुत करती हैं। जैन साहित्य में, टीकाग्रन्थों में महावीर की कथाएँ बड़ी रोचक और स्वाभाविकता से प्रस्तुत की गयी हैं। 'अनुयोगद्वार' पर हरिभद्र की टोका तथा आचारांग और सूत्रकृतांग पर शीलांक की टीकाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। कथा साहित्य-आगम तो कथा साहित्य के मूलस्रोत हैं। 'कहाणयकोस' (कथाकोशप्रकरण) में जिनेश्वरसूरि ने आगमों पर आधारित अनेक कथाएँ लिखी हैं। इन कथाओं में महावीर का प्रसंग शालिभद्र-दीक्षा ग्रहण में विशेष आकर्षक व प्रेरक है। शालिभद्र महावीर के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर श्रमणधर्म स्वीकार करता है। पौराणिक और ऐतिहासिक काव्य साहित्य - जैनधर्म में 68 शलाका महापुरुषों 28 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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