________________
वीरसेन आचार्य ने इन छह खण्डों पर 72 हजार श्लोकप्रमाण 'धवलाटीका' की रचना की। कषाय प्राभृत' नामक ग्रन्थ पर आचार्य जिनसेन ने टीका लिखी जो 'जयधवला' नाम से विख्यात है । " इस ग्रन्थ में बताया गया है कि तीर्थंकर महावीर ने 20 वर्ष, 5 मास, 20 दिन तक (ऋषि, मुनि, यति और अनगार) इन चार प्रकार के लाधुसंघ एवं श्रमण, श्रमणी श्रावक श्राविका सहित देशविदेश में महान् धर्म प्रचार किया" (धवला, पृ. 81 ) ।
भगवान महावीर के सर्वज्ञ, और परमात्मा बनने के विधि-विधान का बड़ा सुन्दर चित्रण 'जयघवला' में किया गया है। "12 वर्ष, 5 मास, 15 दिन तक तपश्चर्या करने के पश्चात् भगवान महावीर ने प्रथम शुक्ल ध्यान की योग्यता प्राप्त की। इसके बाद मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराव चार घातिया कर्मों का क्षय अन्तर्मुहूर्त में करके सर्वज्ञ, वीतराग, जीवनमुक्त परमात्मा पद प्राप्त किया।
तिलोयपण्णत्ति ( त्रिलोकप्रज्ञप्ति ) - यह आठ हजार श्लोकों का बृहद् ग्रन्थ है । आचार्य तिवृषभ की यह दूसरी रचना है। इसके नौ अधिकार हैं। "प्रथम महाधिकार में महावीर प्रसंगान्तर्गत उनके शरीर आदि का वर्णन हैं। चौथे महाधिकार में चौबीस तीर्थंकरों की जन्मभूमि, नक्षत्र, आयु का उल्लेख है। इसी में महावीर की कुमार अवस्था में तप स्वीकार करने का वर्णन है।.... महावीर का निर्वाणकाल निर्धारण करने में इस ग्रन्थ का महत्त्व विशेष है। **
उपांगसाहित्य-- जैन साहित्य में अंगों की रचना गणधरों ने की है तथा उपांगों की स्थविरों ने उपांग संख्या में बारह हैं, जिनमें विविध सामग्री के साथ महावीर विषयक प्रसंग भी पर्याप्त हैं। इन उपांगों में 'उबवाइय', 'रायपसेणइय' (राजप्रश्नीय), 'जीवाजीवाभिगम', 'पन्नवणा' (प्रज्ञापना) तथा 'चन्दपण्णत्ति' आदि प्रमुख उपांग हैं। उनमें महावीर के समवसरण के प्रवचन विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। महावीर के अंगोपांगों का भी बड़ा मनोहारी वर्णन है ।
प्रकीर्णक साहित्य - तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट श्रुत की, श्रमणों द्वारा कथित रचनाएँ 'प्रकीर्णक' कही जाती हैं। महावीर के काल में प्रकीर्णकों की संख्या 14000 बतायी गयी है, जबकि आज केवल 11 प्रकीर्णक उपलब्ध हैं। इन 10 प्रकीर्णकों में केवल 'देविन्दथव' (देवेन्द्रस्तव ) प्रकीर्णक में महावीर प्रसंग आया है।
छेदसूत्र साहित्य - छेद सूत्रों की संख्या छह है। इनमें से दशाश्रुतस्कन्ध' ( दससुयक्खन्ध) चौथा छेदसूत्र है । इस ग्रन्थ में दस अध्ययन हैं। आठवें अध्ययन में भगवान महावीर के च्यवन, जन्म, संहरण, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष का विस्तृत वर्णन है। इसी का दूसरा नाम 'कल्पसूत्र' है। महावीर की जीवनी इसमें काव्यमय शैली
1. विद्यानन्द मुनि तीर्थकर बर्द्धमान, पृ. 58, 50 ५. आचार्य यतिवृषभ तिलोयपण्णनि भाग, पृ. 941
भगवान महावीर को जीवनी के स्रोत : 27