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अन्तर्गत द्वितीय पूर्व आग्रायणी के कुछ अधिकारों का ज्ञान आचार्य धरसेन के पास शेष था जिसे उन्होंने आचार्य पुष्पदन्त और भृतवली को दिया। उसी के आधार पर उन्होंने 'षटूखण्डागम' जैसे विशालकाय ग्रन्थ का निर्माण किया। श्वेताम्बर परम्परा अंग प्रविष्ट और अंगवाह्य ग्रन्थों को आज भी उपलञ्च मानती हैं।
अनुयोग साहित्य-अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य ग्रन्थों के आधार पर जो ग्रन्थ लिखे गये उन्हें चार विभागों में विभाजित किया गया है-1, प्रथमानुयोग, 2. करणानुयोग, 3. द्रव्यानुयोग, 4, चरणानुयोग।
(1) प्रथमानुयोग में ऐसे ग्रन्थ होते हैं जिनमें पुराणों, चरितों और आख्यायिकाओं के माध्यम से सैद्धान्तिक तत्त्व प्रस्तुत किये जाते हैं। महावीर चरित काव्य इसी अनुयोग में आते हैं।
(2) करणानुयोग में ज्योतिष और गणित के साथ ही तीन लोकों का समग्न वर्णन होता है। सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्य इस विभाग के अन्तर्गत आते हैं।
(3) द्रव्यानुयोग में जीव तत्त्व, अध्यात्म आदि का विचार किया गया हैं। ऐसे ग्रन्थों में समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय आदि ग्रन्थों का समावेश है।
(4) चरणानुयोग में मुनियों और गृहस्थों के नियमोपनियमों का विधान होता है। कुन्दकुन्दाचार्य के नियमसार, रयणसार, चट्टकर का मूलाचार, शिवार्य की भगवतीआराधना, आचार्य समन्तभद्र का रत्नकरण्डनावकाचार आदि ग्रन्थ इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
श्वेताम्बर-परम्परा में महावीर
श्वेताम्बर-परम्परा में भगवान महावीर के श्रुतोपदेश को सुरक्षित रखने के लिए पाटलिपुत्र वाचना, माधुरी वाचना, बलभी वाचनाएँ सम्पन्न हुईं। उनके आधार पर उस साम्प्रदायिक साहित्य का निर्माण हुआ। दिगम्बर परम्पराओं में उक्त बाचनाओं को स्वीकृति नहीं है। क्योंके अंगज्ञान ने सामाजिक रूप कभी ग्रहण नहीं किया। वह गुरुशिष्य परम्परा से प्रवाहित होता हुआ माना गया है। अतः उसकी दृष्टि में तो लगभग सम्पूर्ण आगम साहित्य लुप्त हो गया, जो आंशिक ज्ञान सुरक्षित रहा उसी के आधार पर 'षट्खण्डागम' की रचना की गयी है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर आगम साहित्य में महावीर के जीवन विषयक संकेत किस तरह के प्राप्त होते हैं, उसका विवेचन किया जाता है।
अंगसाहित्य-जैन आगमों में प्रत्यक्षतः आये महावीर चरित विषयक प्रसंगों का विवरण निम्न रूप में है
आयारांग (आचारांगसूत्र)-द्वादशांगों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है । अतः इसे अंगों का सार कहा जाता है। भगवान महावीर विषयक विशेष तथ्य आचारांग के नौवें 'उपध्यान श्रुत' नामक अध्ययन में प्रस्तुत हैं । महावीर की चर्या, शय्या, सहिष्णुता,
और तपस्या का मार्मिक वर्णन इसके चार उद्देश्यकों में प्रस्तुत किया गया है। ५. :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित 'पगवान महावीर