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________________ भी इसी समय लिखा गया। इस तरह उपलश्च दिगम्बर आगम ग्रन्थ इ. जन प्रथम शताब्दी के आमपास निपिबद्ध किये गये। बंताम्बर मान्यता के अननार नागमों के लिपिवद्रोन के पूर्व नगर वाचनाएं हुई। इन वाचनाओं के पश्चान !!, आगमों का निषिद्ध किया गया। विविध वाचनाओं का समन्वय करके 'माथी' वाचना को आधार बनाया गया। रापलब्ध आगम इसी बाचना के परिणाम हैं। जैन साहित्य का कालविभाजन पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने अपन जैन साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ में लिखा है-जेन आगम ताहित्य के विकास का इतिहास प्रथम शताब्दी ई. पू. में आरम्भ होकर वर्तमान काल तक आता है। निम्न प्रकार से काल विभाजन किया जाता है.. 1. ई.पू. प्रथम शताब्दी से ई. के चतर्थ शताबी के अन्त तक। ५. ई. पांचवीं शताब्दी से नौवीं शताब्दी के अन्त तक । 3. दमीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी के अन्त तक। 4. पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ से वीसी शताब्दी में अन्न तक। प्राकृत जैन साहित्य-जैनधर्म की प्राचीनता वैदिक काल या उसस भी प्राचीनतर मानी जा मकती है। उस काल के प्राकृत जैन साहित्य को '' मंज्ञा से जाना जाता था। उनकी संख्या चौदा है-1. उत्पादचं, 2. अनावणी, 3. चीयांनवाद, 1. अस्तिनास्तिग्रवाल, 5. ज्ञानप्रवाद, , सत्यप्रवाद, 7. आत्मप्नवाद, H, कर्मप्रवाद, 11. प्रत्याखाान, 10. विद्यानुवाद, 11. कन्याणवाद, 12. प्राणावाय, 1:3. क्रियाविशाल और 1. लोकविन्दुसार। परम्परागत साहित्य-उत्तरकाल में यह साहित्य दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पग में विभक्त हुआ। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार यह साहित्य-अंगप्रविष्ट और अंगवाद्य रूप है। अंग प्रविष्ट में बारह अंगां का समावेश है 1. आचागंग, 2. सूत्रकृतांग, 3. स्थानांग, 4, समवायांग, 5, व्याख्याप्रप्ति, fi, ज्ञातृभम कथा, 7. उपासकाध्ययन, ४. अन्तःकदूदशांग #. अनुत्तपिपातिकदशांग, 12. प्रश्नव्याकरण ।।. विपाकधूत 12. दृष्टिवाद।। दृष्टिबाद कं पांच भेद हैं-1. परिकम, 2. सूत्र, , प्रथमानयोग, 1. पूर्वगत और ॐ. चूतिका । पूर्व के चोरह भेद है। उन अंगों के आधार पर रचित ग्रन्थों का अंगवाद्य कहते हैं जिनकी संख्या चौदह हैं-सामयिक, चविंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वनयिक, कृतिकम, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापण्डरीक और निपिन्द्रिका। दिगम्बर-परम्परा इन अंग प्रनिष्ट और अंगवाय ग्रन्थों को बिनुन हा मानता है। उसके अनुसार भगवान महावीर के भागनर्वाण के 12 वर्ष के पश्चात अंग ग्रन्थ क्रमशः विच्छिन्न होन नगे। दाष्टवाद कं भगवान महावीर का जीवनी के धान :: १३
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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