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ग्रन्थराज दिगम्बर-परम्परा में सुरक्षित हैं। उनमें वर्णित विषच और उसका विस्तार भी पूर्वी के महत्त्व को ख्यापन करता है। दिगम्बर परम्परा के जैन साहित्य का इतिहास इन्हीं ग्रन्यराजों से आरम्भ होता है।
जैन आगम ग्रन्थ का स्वरूप
भगवान महावीर की वाणी में तत्त्वज्ञान, आचार, लोकविभाग आदि अनेक विषयों के सम्बन्ध में उनकी स्वतन्त्र और मौलिक देन है। भगवान महावीर ने तत्कालीन लोकभाषा पागधी तथा शौरसेनी (अद्धमागधी) को अपने उपदेशों का माध्यम बनाया था। और इस तरह गौतम गणधर के द्वारा ग्रथित द्वादशांग श्रुत की भी भाषा अर्द्धमागधी कही जाती है, किन्तु उनका लोप होने पर शौरसेनी भाषा, जो वास्तविक प्राकृत है, दिगम्बर जैन आगम साहित्य की रचना का माध्यम रही। और जब संस्कृत भाषा लोकप्रिय हुई, तो जैनाचार्यों ने उसमें ग्रन्थ-निर्मिति की। अपभ्रंश भाषा का प्रचार होने पर उसमें भी जैन साहित्य का निर्माण हुआ। अन्त में अपभ्रंश से निःसृत आधुनिक भारतीय भाषाओं में जैन आगम जनता के लिए सुगम हो, इसलिए विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों-महाकाव्यों आदि का सृजन हुआ। सब अंमों एवं पूर्वो का एकदेश आचार्य गुणधर, आचार्य कुन्दकुन्द तथा धरसेनाचार्य को प्राप्त हुआ। गुणधर में कसायपाहुड' (कषायप्राभृत) ग्रन्थ लिखा। आचार्य कुन्दकुन्द ने 84 'पाहुइ' एवं धरसेनाचार्य के आदेश पर भूतबली और पुष्पदन्त आचार्यों ने 'षट्खण्डागम' सिद्धान्त ग्रन्थ की रचना की।
संक्षेप में श्रुतावतार का यह विवरण वीरसेन स्वामी की 'कसायपाहुड' की टीका 'जयधवला' में तथा षटूखण्डागम की टीका 'धवला' में दिया गया है। भूतबली अपचार्य ने षट्खण्डागम' की रचना करके उन्हें पुस्तकों में स्थापित किया और ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन पुस्तकों के रूप में विधिपूर्वक पूजा की। इससे वह तिथि श्रुतपंचमी के नाम से प्रसिद्ध है।
जैन आगमग्रन्थों का लिपिकरण
दिगम्बर मान्यता के अनुसार पंचमपूर्व के ज्ञाता आचार्य गुणधर (ई.पू. प्रथम शताब्दी) ने कसायपाहुइ और ई. प्रथम शताब्दी में द्वितीय पूर्व के ज्ञाता आचार्य धरसेन के शिष्य आचार्य पुष्पदन्त और भूतबली ने 'षटूखण्डगम' ग्रन्थ की रचना करके श्रुत को लिपिबद्ध किया। इसके पूर्व ही आचार्य कुन्दकुन्द आध्यात्मिक पाहुइ ग्रन्थों की रचना कर चुके थे। उनके बाद चूर्णि, सूत्र तथा 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थ की रचना यतिवृषभाचार्य ने की । उमास्वामी का तत्त्वार्थसूत्र' और वट्टकर आचार्य का 'मूलाचार'
1. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैन साहित्य का इतिहास, भाग 1, पृ. ।.
22 :: हिन्दी के पहाकाव्यों में चित्रित भगवान पहावीर