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________________ प्राप्त योगीश्वर वृषभ की कायोत्सर्ग मुद्रा इसका जीवन्त प्रमाण है।'' श्रमण संस्कृति में धीतराग, हितोपदेशी और सर्वज्ञ चौबीस तीर्घकरों की प्रतिष्ठा कर मनुष्य की महत्ता को (पानवता को महत्त्व प्रदान किया गया है। जैन आगम साहित्य का स्वरूप महावीर-जीवन-वृत्त के मूल आधार-स्तम्भ जैन आगम हैं। पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री का कथन है-"उपलब्ध समस्त जैन साहित्य के उद्गम का मूल भगवान पहावीर की वह दिव्यवाणी है, जो बारह वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् केवलज्ञान की प्राप्ति होने पर लगभग 42 वर्ष की अवस्था में (ई.पू. 557 वष) श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन ब्राह्म मुहूर्त में राजगृही के बाहर स्थित विपुलाचल पर्वत पर प्रथम वार निःसृत हुई थी और तीस वर्ष तक निःसृत होती रही थी। श्रुत-महावीर की दिव्यध्वनि को हृदयंगम करके उनके प्रधान शिष्य गौतम-गणधर ने उसे बारह अंगों में निबद्ध किया । उस द्वादशांग में प्रतिपादित अर्थ को गणधर ने महावीर के मुख से श्रवण किया था। इससे उसे 'श्रुत' नाम दिया गया। अतः गणधर को ग्रन्थकर्ता एवं भगवान महावीर को अर्थकर्ता कहा जाता है। गौतम गणधर से लोहाचार्य अपरनाम सुधर्मा, सुधर्मा से जम्बूस्वामी को तथा जम्बूस्वामी से पाँच केवली तक श्रुत परम्परा मौखिक रूप में रही। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु थे। द्वादशांगरूप श्रुत-आचार्य-परम्परा के रूप में मौखिक ही प्रवाहित होता रहा। श्रुतकेवली “भद्रबाहु' के समय तक उसका प्रवाह अविच्छिन्न बना रहा। भद्रबाहु द्वादशांग श्रुत के एकमात्र प्रामाणिक उत्तराधिकारी श्रुतकेयली थे। कहा जाता है कि पाटलिपुत्र में प्रथम जैन वाचना हुई। किन्तु श्रुतकेवली भद्रबाहु की अनुपस्थिति के कारण अंगों का संकलन विशृंखलित रहा। श्रुतावतार-भद्रबाहु के पश्चात् जैन संघ दिगम्बर और श्वेताम्बर पन्थ में विभाजित होने लगा और दोनों की गुरु परम्परा भी भिन्न हो गयी । दिगम्बर परम्परा में महावीर के निर्वाण के पश्चात 683 वर्ष तक (ई. सन् 156) अंगज्ञान प्रचलित रहा। पश्चात् आचार्य-परम्परा ने उसे सुरक्षित रखा, लेकिन मूल में उसके कुछ अंश ही सुरक्षित रह पाये। श्वेताम्बर परम्परा में दूसरी वाचना मथुरा में हुई। बलभी की तीसरी वाचना के समय संकलित ग्यारह अंगों को सम्मिश्र पुस्तकालढ़ किया गया, किन्तु महत्त्वपूर्ण बारहवाँ अंग का अधिकांश नष्ट हो गया। पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री के शब्दों में___"चौदह पूर्वो में से दो पूर्वो के दो अवान्तर अधिकारों से सम्बद्ध, दो महान् 1. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : तीर्थकर महागीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड ।, पृ. 3 2. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैन साहित्य का इतिहास, भाग ।, पृ. 1 भगवान महावीर की जीवनी के स्रोत :: 21
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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