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________________ प्रतिपादक कहा गया है। परन्तु महाव्रत सभी कालों में पाँच ही रहे हैं, चाहे वह वृषभनाथ का हो या महावीर का। ___'ऋषिभाषित' एवं 'भगवती' आदि के उल्लेख से यह संकेत मिलता है कि महावीर ने तत्त्वज्ञान सम्बन्धी अनेक अवधारणाएँ यथावत् रूप से पाश्वपित्वों से ग्रहण की थीं। परन्तु यथार्थ यह है कि जन्म से ही वे मति-श्रुत-अवधिज्ञान-इन तीनों ज्ञान के धारक थे। तीसरी-चौथी शताब्दी के बाद 24 तीर्थंकरों की मान्यता स्थिर होने के बाद ही भगवान महावीर के चरित के सब वर्णन कल्पसूत्र, समवायांग, आवश्यक नियुक्ति एवं तिलोयपणत्ति में मिलते हैं। प्राचीन युग में जीवनी की अपेक्षा केवल उपदेश माग की ही प्रधानता थी । जीवनी मौखिक रूप में प्रचलित थी। जैन आगम साहित्य का उद्गम भगवान महावीर की महानता से समस्त जैन साहित्य अलंकृत है। भगवान महावीर ने केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् अपनी दिव्यध्वनि द्वारा लोकमंगल की भावना से जो हितोपदेश दिया, उसे गणधरों ने सूत्रबद्ध किया। केवली, श्रुतकेवलियों ने महावीर के सिद्धान्तों एवं चरित्र का अवधारण (स्मृति) एवं संरक्षण किया और उसके पश्चात् सारस्वताचार्य, प्रबुद्ध आचार्य, परम्परापोषक आचार्यों एवं आचार्य तुल्य कवियों एवं लेखकों ने महावीर चरित को विशाल वाङ्मय की थाती के रूप में हमें प्रदान किया। वस्तुतः महावीर की दिव्यध्वनि से उद्भूत आगम आदि साहित्य दीपस्तम्भ के समान है। जैन आगमों में भगवान महावीर की जीवनी के स्रोत डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का कथन है-“ऐतिहासिक दृष्टि से धर्म-दर्शन की उत्पत्ति का पता लगाना असम्भव है। इसके लिए प्रागैतिहासिक काल की सामग्री का विवेचन आवश्यक है। विश्व में धर्म-दर्शन का स्वरूप निर्धारण करने के हेतु बीतराग नेता या तीर्थकर जन्म ग्रहण करते हैं। वर्तमान कल्पकाल में चौवीस तीर्थंकर हुए हैं, जिनमें अन्तिम तीर्थंकर महावीर हैं।" जैनधर्म में मान्य तीर्थंकरों का अस्तित्व वैदिककाल के पूर्व भी विद्यमान था । लेकिन इतिहास इस परम्परा के मूल तक अभी तक नहीं पहुँच सका है। "उपलब्ध पुरातत्त्व सम्बन्धी तथ्यों के निष्पक्ष विश्लेषण से यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि तीर्थंकरों की परम्परा अनादिकालीन है-मोहनजोदड़ों के खंडहरों से 1. डॉ. नेपिचन्द्र शास्त्री : तीथंकर महावीर और उनको आचार्य परम्पय, खण्ड 1, पृ. ५ 20 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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