________________
को अभिव्यक्ति देने एवं मानसिक भावों एवं विचारों के चित्रण के लिए इस विवरण शैली का प्रयोग प्रमावकारी ढंग से हुआ है।
आलोच्च महाकाव्यों में आत्मकथात्मक एवं संवाद शैली का भी प्रयोग चरित्रनायक के हृदय के ऊहापोह, भावान्दोलन एवं आत्मविश्लेषण के लिए हुआ है। चरित्रनायक के मनोविश्लेषण के लिए दृश्य शैली का भी यत्र-तत्र प्रसंगोचित प्रयोग हुआ है। इस शैली के द्वारा छोटे-छोटे दृश्यों के चित्रण द्वारा बातावरण और पृष्ठभूमि के साथ-साथ चरित्रनायक की रूपाकृति एवं कार्यों का सजीव चित्रण हुआ है। जिस प्रकार चित्रकार विराट दृश्य कोरी रेखाओं एवं रंगों के माध्यम से चित्र में प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार आलोच्य महाकायों के कवियों ने शब्द-चित्रों के माध्यम से चरित्रनायक के महत्त्वपूर्ण कार्यों, निर्णयों एवं छोटे-छोटे जीवनखण्डों और घटनाओं की दृश्यपरक प्रस्तुति की है।
विविध मनोवैज्ञानिक शैलियों के प्रयोग के साथ-साथ एकालाप शैली का प्रयोग भी अन्तरंग चित्रण पद्धति में दिखाई देता है। भगवान महावीर स्वयं को ही सम्बोधित करते हुए अपनी विभिन्न मानसिक स्थितियों का स्वयं विश्लेषण करते हुए चित्रित किये गये हैं। इस प्रकार आधुनिक महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर के चरित्र का चित्रण कलात्मक ढंग से प्रस्तुत हुआ है। 'वर्द्धमान' में चरित्र-चित्रण
शिल्प-सौष्ठव एवं काव्यगत उत्कृष्टता की दृष्टि से 'बर्द्धमान' एक सफल महाकाव्य है। भगवान महावीर के सम्पूर्ण जीवन के समग्न चरित्र को पूर्व भवों से लेकर निर्वाण पर्यन्त तक सत्रह सर्गों में विभाजित किया है। महावीर के चरित्र की शिशु, किशोर, युवक, तपस्वी एवं उपदेशक की अवस्थाओं को चित्रित करते हुए कई घटनाओं, प्रसंगों को मौलिक उद्भावना की है। जैसे-अँगूठे के स्पर्श से मेरु कम्पन, अहिमर्दन, मदमत्त हाथी नियन्त्रण, व्यन्तरों द्वारा किये गये विविध उपसर्ग, अनंग परीक्षा, चन्दना उद्धार आदि घटनाओं के विस्तृत वर्णन के द्वारा महावीर के चरित्र की कतिपय विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। महावीर के अन्तःकरण की विविध मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति के उपकरणों का जैसे नगर, नदी, पर्वत, षट्ऋतुओं के वर्णनों द्वारा चरित्र-चित्रण हुआ है।
__ अपनी कल्पना-शक्ति के प्रयोग द्वारा महावीर जैसे ऐतिहासिक चरित्र को प्राचीन पौराणिक आख्यानों और उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों का आधार लेते हुए भी चित्रित किया गया है। इस प्रकार के चित्रण का उद्देश्य युगीन सन्दर्भ में महावीर के चरित्र को प्रस्तुत करना रहा है। काव्य की भाषा आद्योपान्त प्रांजल और संस्कृतनिष्ठ रही हैं। अत्यधिक सामासिक पदावली के प्रयोग से चरित्र-चित्रण में दुरूहता आ गयी है। चरित्र-चित्रण की भाषा-शैली में ओज, माधुर्य आदि गुण, विविध अलंकारों का
भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण :: 133