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________________ सक्षम प्रयोग हुआ है। महाकवि अनूप की चरित्र-चित्रण शैलो को व्यापकता और गम्भीरता उनके व्यक्तित्व के अनुकूल ही रही है। भगवान महावीर का व्यक्तित्व मूलतः वैराग्यमूलक रहा है। अत: उनको चरित्रगत विशेषताओं के अनुसार शान्त रस के परिपाक से महावीर के समस्त चरित्र का चित्रण हुआ है। शान्त रस उदात्त वृत्ति का प्रेरक और पोषक है। महावीर के चरित्र-चित्रण में शान्त रस अंगीरस के रूप में प्रतिष्टित हुआ है और गौण रूप में शृंगार, वीर आदि रसों की अभिव्यक्ति हुई है। 'निर्वेद' शान्त रस का स्थायी भाव है। 'आलम्बन' संसार की असारता और क्षणभंगुरता है। और 'उद्दीपन' श्रमणाचार के आदशों-संयम, तप-त्याग आदि हैं। महावीर के चरित्र की उदात्तता एवं विचारों की महानता की कलात्मक अभिव्यक्ति द्वारा पाठकों को शान्त रस की अनुभूति का आनन्द हो पाता है। इस तरह कवि अनूप ने महावीर के चरित्र का चित्रण बहिरंग एवं अन्तरंग रूप में करके उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की प्रासंगिकता को स्पष्ट किया है। 'तीर्थंकर भगवान महावीर' में चरित्र-चित्रण कवि वीरेन्द्रप्रसाद जैन ने लोकरंजक भगवान महावीर के पावन चरित्र का 'सरल', आडम्बररहित, सरस भाषा-शैली में पनोग्राही चित्रण किया है। भगवान महावीर के चरित्र-चित्रण में बहिरंग पक्ष एवं अन्तरंग पक्ष इन दोनों में वस्तु-वर्णन एवं भाव-चित्रण का निर्वाह साहित्यिक भाषा में तथा सरल शैली में स्वाभाविक रूप में किया गया है। प्रबन्धकाव्य में वस्तु-वर्णन के लिए आठ सर्गों का विभाजन है । उनका नामकरण क्रमशः है-पूर्वाभास, जन्ममहोत्सव, शिशुवय, किशोरवय, तरुणाई, विराग, अभिनिष्क्रमण तथा तप, निर्वाण एवं वन्दना । उक्त प्रसंगों का पंचकल्याणक महोत्सयों के वर्णनों द्वारा चित्रण किया गया है। भगवान महावीर के चरित का दिगम्वर-परम्परासम्मत विविध घटनाओं एवं पौराणिक प्रसंगों के वर्णनों द्वारा चित्रण किया है। महावीर के चरित्र-वर्णन की शैलीगत सुन्दरता, ध्वन्यात्मकता, स्पाष्टवादिता और प्रवाहपटुता आदि विशेषताएँ इस चरित्र-चित्रण शैली की रही हैं। सर्गों के शीर्षकों से ही भगवान महावीर के चरित्र के क्रमिक विकास का आभास मिल जाता है। कधि वीरेन्द्रप्रसाद जैन ने अपनी कुशाग्र कल्पना के द्वारा भगवान महावीर के परम्परागत चरित्र में आधुनिकत्ता का भी बोध कराया है। महाकाव्य के प्रारम्भिक सर्ग से लेकर आठवें सर्ग के अन्त तक भगवान महावीर की अन्तःसचेतना के प्रवाह की अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति वर्णन, षट्वातु वर्णन, तद्यगीन परिवेश का अवलम्बन लिया है। भगवान महावीर के वैराग्यमूलक चरित्रगत विशेषता के अनुकूल ही शान्तरस के माध्यम से उनके चरित्र का चित्रण किया हैं। गौण रूप में करुण और वीर रस का भी परिपोष हुआ है। महाकाव्य के प्राचीन संस्कृत 134 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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