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चतुष्टय का अधिकारी हो जाता है । अतः भगवान महावीर का जीवन-दर्शन आत्मोद्धारक और लोकोद्धारक है।
चरित्र-चित्रण-सौन्दर्य
आलोच्य महाकाव्यों के चरित्रनायक भगवान महावीर ऐतिहासिक चरित्र होने के कारण भारतीय लोक-मानस में उनके चरित्र के सम्बन्ध में एक विशिष्ट बद्धमूल धारणा प्रचलित रही है। वे जैनधर्म की तीर्थकर परम्परा के अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर हैं। जैनधर्म के प्रमुख प्रवर्तक के रूप में उनके द्वारा प्रस्थापित जीयन मूल्यादर्शों अर्थात् अहिंसा, अनेकान्त, स्याद्वाद समस्त प्राणिमात्र की आत्मा की समानता, मनुष्य मात्र की महत्ता की स्थापना, उनकी आत्मवादी जीवन दृष्टि में हर आत्मा अपने पुरुषार्थ के बल पर परमात्मा के पद को प्राप्त कर सकती है अर्थात् जीवन की स्वावलम्बी दृष्टि आदि उपदेशों को लेकर उनके अनुयायियों में सर्वसम्मति तो है, लेकिन उनकी जीवनी विषयक विविध प्रसंगों और घटनाओं को लेकर मतमतान्तर होने के कारण उनके अनुयायियों ने भगवान महावीर के चरित्र को साम्प्रदायिक चरित्र बनाया है। परिणामस्वरूप तयुगीन विविध जैनेतर सम्प्रदायों में भी भगवान महावीर की चरित्र विषयक अनेक मिथ्या धारणाएँ प्रचलित रही हैं। अतः भगवान महावीर के चरित्र का विश्लेषण ऐतिहासिक एवं पौराणिक विकास क्रम के परिप्रेक्ष्य में करने की आज नितान्त आवश्यकता रही है।
आलोच्य महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर के चरित्र-चित्रण में आधुनिक कवियों ने मनोवैज्ञानिक, बुद्धिवादी एवं मानवतावादी दृष्टियों को विशेष महत्त्व दिया है। वस्तुतः इन्हीं दृष्टियों से महावीर के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का सही मूल्यांकन हो सकेगा। आधुनिक हिन्दी कवियों ने भगवान महावीर के ऐतिहासिक चरित्र को परम्परागत पौराणिक परम्परा का आधार लेते हुए भी वर्तमान युग जीवन के सन्दर्भ में उनकी जीवनी को प्रस्तुत किया है।
आलोच्य महाकाव्यों के कवियों ने महावीर के चरित्र-चित्रण में उनके चरित्र की महत्ता को स्थापित किया है। चरित्र के क्रमिक विकास को दर्शाने के हेतु, कथानक को सुगठित बनाने के लिए, कालक्रमानुसार चरित्र की घटनाओं का चित्रण विवरण शैली में आधुनिक कवियों ने प्रस्तुत किया है। उन्होंने पात्र का चरित्र-चित्रण, कथानक, पृष्ठभूमि और देशकाल, चातावरण भी विवरण शैली में चित्रित किया है। चरित्रनायक की युगीन परिस्थितियाँ एवं उनके परिवेश के चित्रण द्वारा चरित्र की सम्पूर्णता का आभास व्यक्त करने में यह शैली विशेषरूप से उपयुक्त रही है। पात्र की आकृत्ति, वेशभूषा, क्रिया-प्रतिक्रियाओं के सूक्ष्म चित्रण में भी इस शैली का प्रयोग सफलता से हुआ है। नाटकों के दृश्यों के समान मार्मिक प्रसंगों को चित्रित करके, उन्हें सम्बद्ध करने, मानसिक उथल-पुथल के कारण उत्पन्न चरित्र के सूक्ष्म आचरण 132 :: हिन्दी के महाकायों में चित्रित भगवान महावीर