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घटनाओं के विवेचन ने उनके इस जन्म की वैराग्यमूलक मनःस्थिति का सम्यक् वोध हो सकेगा। अतः उनकं 33 पूर्वभवों की घटनाओं का चित्रण आलोच्य आधुनिक महाकाच्यों में हमें प्राप्त होता है।
जेनधर्म, जैनसंस्कृति और जैनदर्शन में कर्मतिद्धान्त का असाधारण महत्त्व है। कृतकर्म के फतानुसार प्रत्येक आत्मा भव-भवान्तर की श्रृंखला में, जन्म-जन्मान्नर की परम्परा में, अनेकानेक योनियों में भटकती रहती है। कर्मसिद्धान्त और पुनर्जन्म का अन्योन्य सम्बन्ध है। सत्कर्म करने से पुण्य संचब होता है, दुष्कर्म करने से दुःख भुगतना पड़ता हैं। जेनधर्म का कर्मसिद्धान्त एक नकद व्यापार हैं। इस हाध से दो, लस हाथ में लो। जैसी करनी, वैसी भरनी होती है।
मिथ्यादर्शन-मिथ्याज्ञान-मिथ्याचार से आत्मा को नरक, तिर्यच योनियों में भ्रमण करना पड़ता है, तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र की पूर्णता से निर्माण की प्राप्ति होती है। संसार अवस्था में अनादि-अनन्त आत्मा की, जन्म-कर्म-जरा मृत्यु की श्रृंखला में कर्म-कर्मफल, पाप-पुण्य और पुनर्जन्म की यात्रा चलती रहती है। भगवान महावीर को भी कंवलज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति तक अनेकानेक योनियों में, भवों में जन्म लेकर तुख-दुख के चक्र में घूमना पड़ा था। __इस प्रकार महावीर चरित्र के अनुशीलन में, उनकी जीवनी के सम्यक् आकलन के लिए, उनके चरित्र में घटित क्रिया-प्रतिक्रियाओं की यथार्थ अनुभूति के लिए उनके मूल में स्थित परिवेश की स्थिति के अध्ययन में उनके पूर्वभवों के विवरण ते सहायता प्राप्त होती है। दिगम्बर परम्परा में उनके तैंतीस पूर्वभवों का तथा श्वेताम्बर परम्परा में सत्ताईस पूर्वभवों का विवरण प्राप्त होता है। आलोच्य महाकाव्यों में पूर्वभवों का वर्णन गुणभद्राचार्य रचित उत्तरपुराण के आधार पर किया गया है। आलोच्य महाकाव्यों में वर्द्धमान, परमज्योति महावीर एवं वीरावन महाकाव्यों में भगवान महावीर के पूर्वभवों का चित्रण प्राप्त होता है।
भगवान महावीर ने स्वयं बतलाया कि सर्वसाधारण के समान में भी अनादि काल से संसार में जन्म-परण के चक्कर में भ्रमण करता रहा। इस युग की आदि में मैं आदि महापुरुष 'ऋषभदेव' का पौत्र था। किन्तु अभिमान के वश में होकर मैंने अपने उस मानव पर्याय का दुरुपयोग किया । परिणामस्वरूप उत्थान-पतन की अनेक अवस्थाओं से गुजरते हुए उत्तरोत्तर आत्मविकास करके मैंने इस अवस्था को आज प्राप्त किया है। अतः मेरे समान ही सभी प्राणी अपना विकास करते हुए मेरे जैसे बन सकते हैं। भगवान महावीर का भिल्लराज पुरुरवा के भव से लेकर अन्तिम भव तक का जीवन-काल उत्थान-पतन की अनेक विस्मयकारक करुण कहानियों से भरा हुआ है। कवि के शब्दों में
"इस समय उन्हें संस्मरण स्वतः निज पूर्व जन्म हो आये थे।
भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण ::11]