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द्वितीय खण्ड/ छठी पुस्तक
प्रश्न २६१ संवर- निर्जरा ज्ञानचेतना के आधीन है या सम्यक्त्व के आधीन है?
उत्तर :
• ज्ञानचेतना तो ज्ञान की पर्याय है। ज्ञान का बन्ध मोक्ष से कोई सम्बन्ध नहीं है। संबर- निर्जरा की व्याप्ति तो सम्यक्त्व से | अतः वे सम्यक्त्व के आधीन हैं चाहे उपयोग स्व में रहे या पर में जावे ।
(३) व्याप्ति अधिकार
प्रश्न २६२
उत्तर
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व्याप्ति किसे कहते हैं ?
सहचर्य नियम को व्याप्ति कहते हैं।
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प्रश्न २६३
उत्तर
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व्याप्ति के कितने भेद हैं ?
दो (१) समव्याप्ति ( २ ) विषम व्याप्ति ।
प्रश्न २६४ - समव्याप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर -
दोनों ओर के सहचर्य नियम को समव्याप्ति कहते हैं [ अर्थात् किन्हीं दो चीजों के सदा साथ रहने को और कभी जुदा न रहने को समव्याप्ति कहते हैं | जैसे सम्यक्त्व और दर्शनमोह का अनुदय । इन दो पदार्थों में कभी आपस में व्यभिचार नहीं मिलता अर्थात् एक मिले और दूसरा न मिले ऐसा कभी नहीं होता। दोनों इकट्ठे ही मिलते हैं। इसलिये इनमें समव्याप्ति है। समव्याप्ति परस्पर में दोनों की होती है। इसको इस प्रकार बोलते हैं- जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँ-वहाँ दर्शनमोह का अनुदय है और जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँ वहाँ दर्शनमोह का अनुदय भी नहीं है। तथा जहाँ-जहाँ दर्शनमोह का अनुदय है वहाँ वहाँ सम्यक्त्व है और जहाँ-जहाँ दर्शनमोह का अनुदय नहीं है वहाँवहाँ सम्यक्त्व भी नहीं है। इसी प्रकार सम्यग्दर्शन और ज्ञानचेतनावरण कर्म के क्षयोपशम की [ अर्थात् लब्धिरूप ज्ञानचेतना की ] समव्याप्ति है। इसके जानने से यह लाभ है कि एक का अस्तित्त्व दूसरे के अस्तित्त्व को और एक का नास्तित्त्व दूसरे के नास्तित्त्व को सिद्ध कर देता है।
• क्या समव्याप्ति में एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के आधीन है ?
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प्रश्न २६५
उत्तर - कदापि नहीं। एक का परिणमन या मौजूदगी दूसरे के आधीन बिलकुल नहीं है। दोनों स्वतंत्र अपने-अपने स्वकाल की योग्यता से परिणमन करते हैं। व्याप्ति का यह अर्थ नहीं कि एक पदार्थ दूसरे को लाता हो या दूसरे को उसके कारण से आना पड़ता हो या एक के कारण दूसरे को अपनी वैसी अवस्था करनी पड़ती हो - कदापि नहीं। व्याप्ति तो केवल यह बताती है कि स्वतः ऐसा प्राकृतिक नियम है कि दोनों साथ रहते हैं एक हो और दूसरा न हो - ऐसा कदापि नहीं होता। बस इससे अधिक और व्याप्ति से कुछ सिद्ध नहीं किया जाता।
प्रश्न २६६ विषमव्याप्ति किसे कहते हैं ?
४६९
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- सम्यक्त्व और ज्ञानचेतनावरण के क्षयोपशम में कौनसी व्याप्ति है ?
उत्तर -
एकतरफा के सहचर्य नियम को विषम व्याप्ति कहते हैं [ अर्थात् जो व्याप्ति एकतरफा तो पाई जावे और दूसरीतरफा न पाई जाने उसे विषम व्याप्ति कहते हैं ] जैसे जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ वहाँ आग है यह तो घट गया पर जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ वहाँ आग भी नहीं है यह नहीं घटा क्योंकि बिना धूम भी आग होती है। इसलिये धूम और अग्नि में समव्याप्ति नहीं किन्तु विषम-व्याप्ति है। इसी प्रकार सम्यग्दर्शन और स्वोपयोग में, राग और ज्ञानावरण में, लब्धि और स्वोपयोग में विषमव्याप्ति है। जिस और से यह व्याप्ति घट जाती है उनका तो परस्पर सहचर्य सिद्ध हो जाता है किन्तु जिस ओर से नहीं घटती उनका सहचर्य सिद्ध नहीं होता – यह इससे लाभ है।
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प्रश्न २६७
उत्तर - समव्याप्ति है क्योंकि सदा दोनों इकट्ठे रहते हैं। एक हो और दूसरा न हो ऐसा कभी होता ही नहीं है । जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँ वहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम भी है और जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं वहाँ-वहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम भी नहीं हैं। तथा जहाँ-जहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम है वहाँ वहाँ सम्यक्त्व है और जहाँ-जहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम नहीं है वहाँ वहाँ सम्यक्त्व भी नहीं है। इसलिये सम्यक्त्व का अस्तित्त्व लब्धिरूप ज्ञान चेतना के अस्तित्त्व को सिद्ध करता है। इससे जो सम्यग्दृष्टियों के ज्ञानचेतना नहीं मानते उनका खण्डन हो जाता है।
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