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ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी
प्रश्न २६८ - सम्यक्त्व और उपयोगरूप ज्ञानचेतना में कौनसी व्याप्ति है?
उत्तर - विषम व्याप्ति है क्योंकि जहाँ-जहाँ स्वोपयोग है वहाँ-वहाँ तो सम्यक्त्व है पर जहाँ-जहाँ स्वोपयोग नहीं है वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व हो – न भी हो - कोई नियम नहीं है। स्वोपयोग के बिना भी सम्यक्त्व रहता है अथवा इसको यूँ भी कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँ-वहाँ स्वोपयोग भी नहीं है पर जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँवहाँ स्वोपयोग हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता - कोई नियम नहीं है। इनमें एक तरफ की व्याप्ति तो है पर दूसरे तरफ की नहीं है -- इसलिए हविषा तो एक तरह का किया जाता है कि शुद्धोपयोग सम्यग्दृष्टियों के ही होता है और दूसरे यह सिद्ध किया जाता है कि सब सम्यग्दष्टियों के हर समय स्वोपयोग नहीं रहता।
प्रश्न २६९ - लब्धि और उपयोगरूप ज्ञान चेतना में कौनसी व्याप्ति है ? ।
उत्तर - विषम व्याप्ति है क्योंकि जहाँ-जहाँ उपयोग है वहाँ-वहाँ तो लब्धि है पर जहाँ-जहाँ उपयोग नहीं है वहाँवहाँ लब्धि हो भी सकती है अथवा नहीं भी हो सकती अथवा इसको यूँ भी कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ लब्धि नहीं है वहाँ-वहाँ तो उपयोग भी नहीं है पर जहाँ-जहाँ लब्धि है वहाँ-वहाँ उपयोग हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता - कुछ नियम नहीं है। इनमें एक तरफा व्याप्त है पर दूसरी तरफा नहीं है - इसलिये विषम व्याप्ति है। इससे एक तो यह सिद्ध किया जाता है कि लब्धि कारण है-स्वोपयोग कार्य है। अतः स्वोपयोग वाले के लब्धि अवश्य है।दूसरा यह सिद्ध किया जाता है कि ज्ञानचेतना प्राप्त जीव अपना उपयोग हर समय स्व में ही रखता हो - पर में न ले जाता हो - यह बात नहीं है। ज्ञानचेतना लब्धि बनी रहती है और उपयोग पर को जानने में भी चला जाता है।
प्रश्न २७० - उपयोग और बन्ध में कौनसी व्याप्ति है?
उत्तर - कोई भी नहीं है क्योंकि जहाँ-जहाँ उपयोग है वहाँ-वहाँ बन्ध होना चाहिये - सिद्ध में उपयोग तो है पर बन्ध बिलकुल नहीं है। जहाँ-जहाँ उपयोग नहीं है वहाँ-वहाँ बन्ध भी नहीं है यह भी नहीं घटा क्योंकि विग्रहगति में उपयोग नहीं है पर बध है। अब दूसरी ओर से देखिये। जहाँ-जहाँ बन्ध है वहाँ-वहाँ उपयोग चाहिये - विग्रह गति में बन्थ है पर उपयोग नहीं है। जहाँ-जहाँ बन्ध नहीं है वहाँ-वहाँ उपयोग नहीं है - यह भी नहीं घटा क्योंकि सिद्ध में बन्ध बिल्कुल नहीं है पर उपयोग सारा स्व में है।
प्रश्न २७१ - राग और ज्ञानावरण में कौनसी व्याप्ति है ?
उत्तर – विषम व्याप्ति है क्योंकि जहाँ-जहाँ राग है वहाँ-वहाँ तो ज्ञानावरण है यह तो ठीक पर जहाँ-जहाँ ज्ञानाचरण है वहाँ-वहाँ राग भी अवश्य हो - यह कोई नियम नहीं है। हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता क्योंकि ग्यारहवें, बारहवें में ज्ञानावरण तो है पर राग नहीं है। जहाँ-जहाँ राग है वहाँ-वहाँ ज्ञानावरण है इससे राग का तो ज्ञानावरण के साथ पक्का सम्बन्ध सिद्ध हो जाता है पर जहाँ-जहाँ ज्ञानावरण है वहाँ-वहाँ राग हो - यह सिद्ध न होने से ज्ञानावरण का राग से कुछ सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता।
प्रश्न २७२ - राग की और दर्शनमोह की कौनसी व्याप्ति है ?
उत्तर – कोई नहीं क्योंकि न राग से दर्शनमोह बन्धता है और दर्शनमोह के उदय से राग होता है। राग की व्याप्ति चारित्रमोह से है - दर्शनमोह से नहीं। इससे यह सिद्ध किया जाता है कि सम्यग्दर्शन सविकल्पक नहीं। सम्यग्दृष्टि के चारित्र में कृष्ण लेश्या रहते हुये भी शुद्ध सम्यक्त्व बना ही रहता है [ यहाँ राग से आशय केवल चारित्रमोह सम्बन्धी राग से है।
प्रश्न २७३ – सम्यग्दर्शन-बन्ध और मोक्ष से किस की व्याप्ति नहीं है तथा किस की है?
उत्तर - सम्यग्दर्शन - बन्ध -- मोक्ष से उपयोग की व्याप्ति नहीं है। दर्शनमोह के अनुदय की व्याप्ति सम्यग्दर्शन से है। राग की व्याप्ति बन्ध से है और संवर निर्जरा की व्याप्ति मोक्षमार्ग से है।