________________
२५२
ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी
साध्य की सिद्धिरूप उपसंहार ८९३-९४-९५
निरुपाधि (अबद्ध) ज्ञान की सिद्धि
अस्ति चित् सार्थ सर्वार्थसाक्षात्कार्यविकारभुक् । अक्षय क्षायिकं साक्षादबद्धं बन्धव्यत्ययात् ॥ ८९३ ॥
अर्थ -- इसलिये यह सिद्ध हुआ कि युगपत् सब पदार्थों को साक्षात् करने वाला विकार को न धारण करने वाला नाश न होने वाला क्षायिक ज्ञान है जो बंधका नाश होने से साक्षात् अबद्ध है। अबद्ध को ही निरुपाधि कहते हैं। सोपाधि (बद्ध) ज्ञान की सिद्धि
बद्धः सर्वोऽपि संसारकार्यत्वे वैपरीत्यतः ।
सिद्धं सोपाधि तद्वेतोरन्यथानुपपत्तितः ॥ ८९४ ॥
अर्थ-बद्ध तो सब हैं ही क्योंकि संसार कार्य में विपरीतता तो प्रत्यक्ष देखी जाती है। इसलिये सोपाधि (बद्ध ज्ञान ) सिद्ध हो गया। यदि संसारियों के ज्ञान को सोपाधि न माना जाय तो उसमें विपरीतता रूप हेतु नहीं बन सकता ।
भावार्थ-बद्ध सोपाधि ज्ञान तो हम लोगों का प्रत्यक्ष है ही क्योंकि इसके कार्य में विपरीतता है। ज्ञान का कार्य एक समय में लोक- अलोक सबको जानने का था, उस स्वभाव को छोड़कर एक पदार्थ को ही जानता हुआ रागी, द्वेषी, मोही हो रहा है। यह ज्ञान की विपरीत क्रिया उसके बद्धत्व को सिद्ध करती है। बद्धत्व को ही सोपाधि कहते हैं। अशुद्धत्व और शुद्धत्व की सिद्धि
सिद्धमेलावता ज्ञानं सोपाधि निरुपाधि च ।
तत्राशुद्धं हि सोपाधि शुद्धं तन्निरुपाधि यत् ॥ २२५ ॥
अर्थ - इस ऊपर के कथन से ज्ञान सोपाधि (बद्ध ) और निरुपाधि (अबद्ध) सिद्ध हो गया। उनमें जो सोपाधि है वह अशुद्ध है और जो निरुपाधि है वह शुद्ध है। इस प्रकार शुद्ध-अशुद्ध भी सिद्ध हो गया ।
अशुद्धत्व का निरुपण समाप्त हुआ।
बद्धत्व और अशुद्धत्व में अन्तर ८९६ से ९०० तक ५ शंका
ननु कस्को विशेषोऽस्ति बद्धाशुद्धत्वयोर्द्वयोः । अस्त्यनर्थान्तरं यस्मादर्थादैक्योपलब्धितः ॥ ८९६ ॥
शंका- बद्धपना और अशुद्धपना इन दोनों में क्या-क्या विशेषता है क्योंकि पदार्थरूप से एक पदार्थ की प्राप्ति होने से अभिन्न पदार्थपना है अर्थात् मेरी समझ में दोनों एक ही है कुछ अन्तर हो तो समझाइये |
समाधान ८९७ से १०० तक
नैवं यतो विशेषोऽरित हेतुमद्धेतुभावतः ।
कार्यकारणभेदाद्धा द्वयोस्तल्लक्षणं यथा ॥ ८२७ ॥
अर्थ-बद्धता और अशुद्धता में कुछ अन्तर नहीं है ऐसा नहीं है अर्थात् अन्तर है क्योंकि एक दृष्टि से बंध कारण
है और अशुद्धता कार्य है यह विशेषता है। इसका स्पष्टीकरण ८९८, ८९९ में है। अथवा दूसरी दृष्टि से बंध कार्य है और अशुद्धता कारण है यह विशेषता है। इसका स्पष्टीकरण ९०० में है। इस प्रकार दोनों में अन्तर है।
बद्धत्व और अशुद्धत्व में कारण कार्य भाव
बन्धः परगुणाकारा किया स्यात्पारिणामिकी |
तस्यां सत्यामशुद्धत्वं तद्द्वयोः स्वगुणच्युतिः ॥ ८९८ ॥
अर्थ-बन्ध पारिणामिकी परगुणाकार क्रिया है और उसके होने पर उन दोनों का अपने अपने गुण से च्युत होना अशुद्धता है।