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________________ २१६ ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी प्रश्न १८६ - प्रमाण का प्रयोग बताओ? उत्तर - जो अनित्य की विवक्षा में नित्य रूप से नहीं है वही नित्य की विवक्षा में अनित्य रूप से नहीं है। इस प्रकार तत्त्व नित्यानित्य है यह प्रमाण पक्ष है। ७६३ प्रश्न १८७ - अतत् नय का प्रयोग बताओ? उत्तर - वस्तु के नवीन भाव रूप परिणमन होने से "यह तो वस्तु ही अपूर्व-अपूर्व है" यह अतत् नामा व्यवहार नय का पक्ष है। ७६४ प्रश्न १८८ - तत् नय का प्रयोग बताओ? उत्तर - वस्तु के नवीन भावों से परिणमन करने पर भी तथा पूर्व भावों से नष्ट होने पर भी यह अन्य वस्तु नहीं है किन्तु वही की वही है यह तत् नय नामा व्यवहार नय का पक्ष है। ७६५ प्रश्न १८९ - शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का प्रयोग बताओ? उत्तर - बस्त में न नवीन भाव होता है न प्राचीन भाव का नाश होता है, क्योंकि न वस्तु अन्य है न वही है किन्तु अनिर्वचनीय अखंड है यह शुद्धद्रव्यार्धिकनय का पक्ष है। ७६६ प्रश्न १९० - प्रमाण का प्रयोग बताओ? उत्तर - जो सत् प्रतिक्षण नवीन-नवीन भावों से परिणमन कर रहा है वह न तो असत् उत्पन्न है और न सत् विनष्ट है यह प्रमाण पक्ष है। ७६७ नोट - हमने केवल अस्तिपक्ष के प्रश्नोत्तर दिए हैं नास्ति पक्ष के छोड़ दिये हैं। जैसे प्रमाण के दिए हैं। प्रमाणाभास के छोड़ दिए हैं। शंका समाधान द्वारा जो पाठ पीसा गया है, उसके प्रश्नोत्तर भी नहीं दिए हैं। हरिगीत वर्ण से पट, पट से वाक्य और वाक्य से रचना बनी। हम तो रमते रूप में, हमको जरूरत क्या पड़ी।
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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