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प्रथम खण्ड / तृतीय पुस्तक
प्रश्न १३८ - पर्यायार्थिक नय किसे कहते हैं ?
उत्तर -
प्रश्न १३९ - व्यवहार नय का लक्षण, कारण और फल बताओ ?
उत्तर -
अंशों को पर्यायें कहते हैं। उन अंशों में से किसी एक विवक्षित अंश को कहने वाली पर्यायार्थिक नय है।
(५१९ )
प्रश्न १४० सद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल बताओ ?
उत्तर -
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उत्तर -
अभेद सत् में विधि पूर्वक गुण गुणी भेद करना व्यवहार नय है। साधारण या असाधारण गुण इसकी प्रवृत्ति में कारण है। अनन्तधर्मात्मक एकधर्मी में आस्तिक्य बुद्धि का होना इसका फल है क्योंकि गुण के सद्भाव में नियम से द्रव्य का अस्तित्व प्रतीति में आ जाता है। (५२२, ५२३, ५२४ )
प्रश्न १४१ - असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल और दृष्टान्त बताओ ?
विवक्षित किसी द्रव्य के गुणों को उसी द्रव्य में भेद रूप से प्रवृत्ति कराने वाले नय को सद्भूतव्यवहार नय कहते हैं। सत् का असाधारण गुण इसकी प्रवृत्ति में कारण है। एक वस्तु का अस्तित्व दूसरी वस्तु से सर्वथा भिन्न है तथा प्रत्येक वस्तु पूर्ण स्वतन्त्र और स्वसहाय है ऐसा भेद विज्ञान होना इसका फल है । (५२५ से ५२८ )
मूलद्रव्य में वैभाविक परिणमन के कारण जो एक द्रव्य के गुण दूसरे द्रव्य में संयोजित करना असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण है। उसकी वैभाविक शक्ति की उपयोगिता इसका कारण है। विभाव भाव क्षणिक है। उसको छोड़कर जो कुछ बचता है वह मूल द्रव्य है। ऐसा मानकर सम्यग्दृष्टि होना इसका फल है पुद्गल के क्रोध को जीव का क्रोध कहना यह इसका दृष्टान्त है । (५२१ से ५३३ ) प्रश्न १४२ - अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, उदाहरण तथा फल बताओ ?
उत्तर -
२११
जिस सत् में जो शक्ति अन्तलीन है। उसको उसी की पर्याय निरपेक्ष केवल गुण रूप से कहना अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है जैसे जीव का ज्ञान गुण । इससे द्रव्य की त्रिकाल स्वतन्त्र सत्ता का परिज्ञान होता है। ( ५३४ से ५३९ )
प्रश्न १४३ - उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, उदाहरण, कारण और फल बताओ ?
उत्तर -
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प्रश्न १४४ अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल बताओ ?
उत्तर -
अविरुद्धतापूर्वक किसी कारणवश किसी वस्तु का गुण उसी में पर की अपेक्षा से उपचार करना उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है। अर्थ विकल्प ज्ञान प्रमाण है यह इसका उदाहरण है। बिना पर के स्वगुण उपचार नहीं किया जा सकता यह इसकी प्रवृत्ति में कारण है। विशेष को साधन बनाकर सामान्य की सिद्धि करना इसका फल है। (५४० से ५४५ )
अबुद्धिपूर्वक विभाव भावों को जीव का कहना अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। वैभाविक शक्ति का उपयोग दशा में द्रव्य से अनन्यमय होना इसकी प्रवृत्ति में कारण है। विभाव भाव में हैय बुद्धि का होना इसका फल है। (५४६ से ५४८ )
प्रश्न १४५ - उपचरित असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण फल बताओ ?
उत्तर -
बुद्धिपूर्वक विभाव भावों को जीव के कहना उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। इसमें पर निमित्त है यह इसका कारण है। अविनाभाव के कारण अबुद्धिपूर्वक भावों की सत्ता का परिज्ञान होना इसका फल है। (५४१ से ५५१ )
प्रश्न १४६ - उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का मर्म क्या है ?
उत्तर -
"ज्ञान पर को जानता है" ऐसा कहना अथवा तो ज्ञान में राग ज्ञात होने से "राग का ज्ञान है" ऐसा कहना अथवा ज्ञाता स्वभाव के भावपूर्वक ज्ञानी "विकार को भी जानता " ऐसा कहना उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का कथन है।