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प्रथम खण्ड/तृतीय पुस्तक
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(असत् ) तथा विशेष के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से अस्ति और सामान्य के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से नास्ति सिद्ध किया था, उस पर इन ४ पद्यों द्वारा नय प्रमाण घटित करके दिखलाये हैं। अस्ति नय को सत् नय और नास्ति नय को असत् नय भी श्री समयसार आदि आगमों में कहा है। दोनों नाम पर्यायवाची हैं।।
भूमिका- अब चारपद्यों द्वारा व्यवहार अन्तर्गत अनित्य, नित्य नय निषेधात्मक निश्चय नय तथा उभयात्मक प्रमाण को लगाकर दिखाते हैं।
अनित्य-नित्य पर नय प्रमाण लगाने की पद्धति ७६० से ७६३ तक उत्पद्यते विनश्यति सदिति यथार प्रतिक्षणं यावत ।
व्यवहारविशिष्टोऽर्य नियतभनित्यो नयः प्रसिद्धः स्यात् ।। ७६011 अर्थ – सत् पदार्थ प्रतिक्षण अपने आप उत्पन्न होता है और नाश होता है। यह नियम से प्रसिद्ध अनित्य नय है जो व्यवहार नय का एक भेद है।
भावार्थ - अनित्य पर्यायार्थिक नय से ऐसा कहा जाता है कि सत् प्रति समय उत्पन्न होता और नाश होता है - अनित्य है।
जोत्पद्यते न नश्यति ध्रुवमिति सत्स्यादनन्यथावृत्तेः ।
व्यवहारान्लभूतो जयः स नित्योऽप्यनन्यशरणः स्यात् ।। ७६१ अर्थ- अन्यथा भाव न होने से अर्थात् त्रिकाली स्वरूप की अपेक्षा सदा एकरूप रहने से सत न तो उत्पन्न होता है और न नष्ट ही होता है। वह धुव (नित्य ) है। यह अनन्यशरण ( स्वपक्ष नियत ) एक नित्य नय है जा व्यवहार नय के अन्तर्गत है।
भावार्थ - नित्य पर्यायार्थिक नय से ऐसा कहा जाता है कि सत् धुव एक रूप ही रहता है। वह उत्पाद व्यय नहीं करता।
न तिनश्यति वस्तु यथा तथा जैत उत्पटाते नियमात् ।
स्थितिमेति न केवलमिह भवति स निश्चयनयस्य पक्षश्च ॥ ७६२॥ अर्थ – जिस प्रकार वस्तु नष्ट नहीं होती है, उसी प्रकार वह नियम से उत्पन्न भी नहीं होती है, तथा धुव भी नहीं है, यह (निषेधात्मक कथन-अनिर्वचनीय कथन) शुद्ध निश्चय नय का पक्ष है।
भावार्थ - उत्पाद, द्रव्य, धौव्य तीनों ही एक समय में होनेवाली सत् की पर्यायें हैं। इसलिये इन पर्यायों को पर्यायार्थिक नय विषय करता है, परन्तु निश्चय नय सर्व विकल्पों से रहित अखण्ड वस्तु को विषय करता है।
यदिदं नास्ति विशेषैः सामान्यस्य विवक्षपा तदिदम् ।
उन्मज्जत्सामान्यैरस्ति तदेतत्प्रमाणमतिशेषात ॥ ७६३ ।। अर्थ - यह जो(वस्तु) सामान्य (नित्य) की विवक्षा में विशेष रूप से (अनित्यपने से नहीं है वही विशेष (अनित्य) की विवक्षा होने पर सामान्य (नित्य)रूप से नहीं है। यह जो नित्य है वही अनित्य है इस प्रकार दोनों को सामान्य रूप से विषय करना- किसी को मुख्य गौण किये बिना यह प्रमाण का पक्ष है।( नित्य का पर्यायवाची सामान्य शब्द है। अनित्य का पर्यायवाची विशेष शब्द है क्योंकि विशेष की उत्पत्ति उत्पाद व्यय से होती हैं ।
भावार्थ -७६० से ७६३ तक - विशेष नाम पर्याय का है। पर्याय अनित्य होती हैं। इसलिये विशेष की अपेक्षा से वस्तु अनित्य है। सामान्य की अपेक्षा वह नित्य भी है। ये दोनों व्यवहार पक्ष हैं। न नित्य-न अनित्य = अनिर्वचनीय - यह शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का पक्ष है। शुद्ध अर्थात् अखण्ड। एक ही समय में मैत्री रूप से नित्य-नित्यात्मक है यह प्रमाण का पक्ष है। चारों श्लोक इकते हैं। वस्तु की अनेकान्तात्मक स्थिति नामा अधिकार में श्लोक ३३० से ४३३ तक जो सत नित्य-अनित्य का निरूपण किया है उस पर इन चार पद्यों द्वारा नय प्रमाण लगाकर दिखलाये हैं।
भूमिका - पूर्ववत् अब चार पद्यों द्वारा व्यवहारनय के भेद रूप तत्-अतत् नय, निषेधात्मक निश्चय नय तथा उभयात्मक प्रमाण को लगाकर दिखाते हैं :