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________________ प्रथय खण्ड तृतीय पुस्तक ६१ भावार्थ-व्यवहार और निश्चय इन दोनों नयों में अर्थालोकविकल्प (अर्थ प्रतिभास रूप विकल्प) समान है। इसलिये 'न तथा' इस आकार वाला निश्चय नय भी पक्ष का ग्राही ज्ञान का रागांश होने से उसमें नयपना सिद्ध हो जाता है। एकाचाहणादिति पक्षस्य स्यादिहांशधर्मत्वम् । न तथेति द्रव्यार्थिकनयोऽस्ति मूल यथा नयत्वस्य || ६०९ ।। अर्थ-प्रश्न उसी को कहते हैं जो एक अंग को ग्रहण करता है। इसलिये 'न तथा' इस पक्ष में भी अंशधर्मता है ही। अतएव 'न तथा'को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय एक अंशको विषय करने से पक्षात्मक है जोकि नयपने का मूल है। भावार्थ-नय सामान्य का लक्षण विकल्प है और निश्चय नय में 'नेति' विकल्प अखण्ड पक्ष का सूचक मौजूद है इसलिये उसमें नय का लक्षण होने से नयपना है। एकाङत्वमसिद्ध न 'नेति' निश्चयनयस्य तस्य पनः । वस्तुनि शक्तिविशेषो यथा तथा तदविशेषशक्तित्वात् ॥६१०॥ अर्थ-'नेति' इस निषेध को विषय करने वाले निश्चय नय में एकांगता असिद्ध नहीं है किन्तु सिद्ध ही है। जिस प्रकार वस्तु में विशेष (भेद)शक्ति एक शक्ति होती है, उसी प्रकार उसमें उस विशेष को नकार करती सामान्य शक्ति (अभेद शक्ति) भी उसका एक अंग है अर्थात् वस्तु भेदाभेदात्मक है। जिस प्रकार भेद एक अंग है उसी प्रकार अभेद भी एक अंग है। भावार्थ-पदार्थ सामान्यविशेषात्मक है। वही प्रमाण का विषय है तथा सामान्यांश द्रव्याथिक नय का विषय है। विशेषांश पर्यायार्थिकनय का विषय है। इसलिये विशेष के निषेध रूप सामान्यांश को विषय करने वाला निश्चय नय में एकांगता सिद्ध ही है। ५९७ से ६१० तक का सार पहले ५८८ से ५९६ तक यह सिद्ध किया जा चुका है कि किसी एक शुद्ध द्रव्य को एक-एक गुण भेद से निरूपण करने वाले वास्तविक व्यवहार नय है! अब यह कहते हैं कि उसको भेद रूप निरूपण न करके अभेदरूप निरूपण करने वाला निश्चय नय है। जगत् में अभेद अखण्ड पूर्ण वस्तु के स्वरूप को दिखलाने वाला कोई शब्द नहीं है। अत: जो कुछ शब्द कहता है, वह भेद करके उदाहरण सहित विशेषण विशेष्य सहित निरूपण करता है। वस्तु का स्वरूप हि अन्तर केवल इतना ही है कि वह भेद करके निरूपण करता है और वस्तु अभेद है। इसलिये व्यवहार नय जो कुछ कहता है, उसके समक्ष निश्चय कहता है कि है तो ऐसी ही पर भेद रूप नहीं-अभेद रूप है इसको"न इति - नेति ऐसा नहीं है - भेद रूप नहीं है अर्थात् अभेद अखण्ड शुद्ध हैं"यह निश्चय का लक्षण है यह 'नेति" इस निषेध रूप विकल्प को लिये हुये है। सामान्य पक्ष का-अभेद पक्ष का सूचक है-भेद का विशेष का-व्यवहार का निषेधक हैं। ___ अगली भूमिका-इस प्रकार श्लोक ६०० से ६१० तक निश्चय नय में 'नेति' विकल्पपने की सिद्धि करके आगे ६२५ तक ऊहापोह पूर्वक निश्चय नय को उदाहरण रहित सिद्ध करते हैं। निश्चय नय उदाहरण रहित है-६११ से ६२५ तक शंका ६११ से ६१२ तक ननु च व्यवहारलयः सोदाहरणो यथा तथाऽयमपि । भवतु तटा को दोषो ज्ञानविकल्पाविशेषतो न्यायात् ॥ ६११॥ शंका-जिस प्रकार व्यवहार नय उदाहरण सहित होता है। उस प्रकार यह निश्चय नय भी उदाहरण सहित होता है। उस प्रकार यह निश्चय नय भी उदाहरण सहित माना जाय तो क्या दोष आता है? क्योंकि ज्ञान विकल्प दोनों में समान रूप से पाया जाता है (जब दोनों में विकल्प है तो दोनों उदाहरण सहित होने ही चाहिये)?
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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