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ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी
(३) मूर्तिमान ऐसा पुद्गल द्रव्य अपने आप ही जीव की अशुद्ध परिणति की उपस्थिति में कर्मरूप परिणमित हो
जाता है, यही इस विषय में भ्रम का कारण है ( ५७५) (४) जो कोई भी कर्ता-भोक्ता होता है वह अपने भाव का होता है। जिस प्रकार कुम्हार वास्तव में अपने भाव का
कर्ता-भोक्ता है किन्तु परभाव रूप जो घड़ा-उसका कर्ता-भोक्ता वह कदापि नहीं हो सकता (५७७)। (५) कुम्हार घड़े का कर्ता है-ऐसा लोक व्यवहार नयाभास है (५७९) ।
तीसरे नयाभास का स्वरूप (१) जो बंध को भी प्राप्त नहीं है ऐसे पर पदार्थों में भी अन्य पदार्थ को अन्य पदार्थ का कर्ता-भोक्ता मानना वह
नयाभास है। (२) गृह, धन, धान्य, स्त्री, पुत्रादि को जीव स्वयं करता है और उनका उपभोग करता है-ऐसा मानना वह नयाभास
है (५८०-८१)। नोट-जीव का व्यवहार पर पदार्थों में नहीं होता, कि अपने में ही होता हासीका परप्रव्य के साथ सम्बन्ध बतलाने वाले सभी कथन नयाभास हैं।
चौथे नयाभास का स्वरूप (१) जेय-ज्ञायक उपचार सम्बन्ध के कारण ज्ञान को ज्ञेयगत कहना तथा जेय को ज्ञानगत कहना भी नयाभास है।
(५८५) नयाभासों का निरूपण पूरा हुवा
वोट-इस प्रकार प्रकरणवश कुछ नयाभासों को बताकर ग्रन्थकार अब फिर से अपने प्रकृत विषय पर आते हैं और
(सम्यक् ) व्यवहार नयों को बतलाते हैं:
पांचवां अवान्तर अधिकार वास्तविक व्यवहार नयों का स्वरूप (५८८ से ५९६ तक)
शंका ननु सर्वतो जयास्ते किं नामानोऽथ वा कियन्तश्च ।
कथमिव मिथ्यार्थास्ते कथमित ते सन्ति सम्यगुपदेश्याः ॥ ५८८॥ अर्थ-सम्पूर्ण नयों के क्या-क्या नाम हैं और वे कितने हैं तथा कैसे वे मिथ्या अर्थको विषय करने वाले हो जाते हैं और कैसे यथार्थ पदार्थ को विषय करने वाले होते हैं ?
नय कितने हैं इसका उत्तर सत्यं यावदनन्ताः सन्ति गुणा वस्तुतो विशेषारख्याः ।
सावन्तो नयवाटा वचोविलासा विकल्यायाः ॥ ५८९॥ अर्थ-दीक है। परमार्थ से जितने भी वस्तु के विशेष संज्ञा वाले अनन्त गुण हैं उतने ही नयवाद हैं अर्थात् उतने
हा हैं (द्रव्यनय) और उतने ही विकल्प के स्थान हैं (भावनय)।( जैसे जीव में अस्तित्व गुण को कहने वाला अस्तित्व नय, जानं गुण को कहने वाला ज्ञान नय है। इत्यादि अनन्त पर्यन्त जानना )।
भावार्थ-यहाँ पर केवल गुणों का उल्लेख इसलिए किया गया है कि यहां पर केवल शुद्ध पदार्थ का प्रकरण है और शुद्ध पदार्थ के प्रकरण में गुण को ही नय कहते हैं। पर्याय के विभाव का प्रसंग ही नहीं है। उसको नय कहने का प्रश्न ही नहीं है। स्वभाव पर्याय गुण में समाविष्ट है और पर द्रव्य की तो नयाभास होती हैं यह पहले कह ही आये हैं। विशेष आगे सार में देखिये।