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प्रथम खण्ड/द्वितीय पुस्तक
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प्रश्न ९९ - उभय किसको कहते हैं? उत्तर - जब एक साथ स्वतःसिद्ध स्वभाव और उसके परिणाम दोनों पर दृष्टि होती है तो वस्तु उभय रूपदीखती
है यह प्रमाण दृष्टि है। जैसे जो जीव है वही तो यह मनुष्य है। जो मिट्टी है वही तो घड़ा है। जो दीप है
वही तो प्रकाश है। जो जल है वही तो कल्लोलें हैं। प्रश्न १०० - अनुभव किसको कहते हैं ? उत्तर - वस्तु न नित्य है न अनित्य है अखंड है और अखंड का वाचक शब्द कोई है ही नहीं। जो कहेंगे वह विशेषण
विशेष्य रूप हो जायेगा और वह भेद रूप पड़ेगा। इसलिए अखण्ड दृष्टि से अनुभय है। इसको शुद्ध (अखण्ड) द्रव्यार्थिक दृष्टि भी कहते हैं।
४१५, ७६२ प्रश्न १०१ - पूर्वोक्त प्रश्न 'नित्य किसे कहते हैं के उत्तर में जो द्रव्य दृष्टि कही है उसमें और अनुभय के उत्तर में जो
शुद्ध द्रव्य दृष्टि कही है इसमें - दोनों में क्या अन्तर है ? उत्तर - वह पर्याय( अंश)को गौण करके निवाली स्वभाव अंश की द्योतक है उसको द्रव्य दृष्टि या नित्य पर्याय
दृष्टि भी कहते हैं और यहाँ दोनों अंशों के अखण्ड पिण्ड को नित्य-अनित्य का भेद न करके अखण्ड का ग्रहण शुद्ध द्रव्यदृष्टि है। यहाँ शुद्ध शब्द अखण्ड अर्थ में है।
७६१, ७६२ प्रश्न १०२ - शुद्ध द्रव्यदृष्टि और प्रमाण में क्या अन्तर है क्योंकि यह भी पूरी वस्तु को ग्रहण करती है और प्रमाण
भी पूरी वस्तु को ग्रहण करता है ? उत्तर- प्रमाण दृष्टि में नित्य-अनित्य दोनों पड़खें का जोड़ रूप ज्ञान किया जाता है। जैसे जो नित्य है वही अनित्य
है। इसमें बस्तु उभय रूप है और उसमें बस्तु अनुभव गोचर है। शब्द के अगोचर है। अनिर्वचनीय है। उसमें नित्य-अनित्य का भेद नहीं है। उसमें वसु अखण्ड एक रूप अखण्ड है।
७६२,७६३ प्रश्न १०३ - व्यस्त-समस्त किसको कहते हैं ? उत्तर- भिन्न-भिन्न को व्यस्त कहते हैं। अभिन्नको समस्त कहते हैं। स्वभाव दृष्टि से समस्त रूप है क्योंकि
स्वभाव का कभी भेद नहीं होता है जैसे- जीव। अवस्था दष्टि से व्यस्त रूप है क्योंकि समय-समय का परिणाम अर्थात् अवस्था प्रत्यक्ष भिन्न-भिन्न रूप है जैसे मनुष्य देव।
४१६ प्रश्न १०४ - क्रमवती अक्रमवर्ती किसको कहते हैं ? उत्तर
स्वभाव दृष्टि को अक्रमवर्ती कहते हैं क्योंकि वह सदा एकरूप है जैसे जीव। और परिणाम-अवस्थापर्याय दृष्टि को क्रमवर्ती कहते हैं क्योंकि अादि से अनन्त काल तक क्रमबद्ध परिणमन करना भी वस्तु का स्वभाव है जैसे मनुष्य देव।
४१७ प्रश्न १०५ - परिणाम के नामान्तर बताओ? उत्तर - परिणाम, पर्याय, अवस्था, दशा, परिणमन, विक्रिया, कार्य, क्रम परिणति, भाव। प्रश्न १०६ - सर्वथा नित्य पक्ष में क्या हानि है ? उत्तर - सत् को सर्वथा नित्य मानने से विक्रिया (परिणति) का अभाव हो जायेगा और उसके अभाव में तत्त्व क्रिया, फल, कारक, कारण, कार्य कुछ भी नहीं बनेगा।
४२३ प्रश्न १०७ - तत्व किस प्रकार नहीं बनेगा ? उत्तर- परिणाम सत् की अवस्था है और उसका आप अभाव मानते हो तो परिणाम के अभाव में परिणामी का
अभाव स्वयं सिद्ध है। व्यतिरेक के अभाव में अन्वय अपनी रक्षा नहीं कर सकता। इस प्रकार तत्त्व का अभाव हो जायगा।
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