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________________ १३४ प्रथराज श्री पञ्चाध्यायी प्रश्न ८८ - अतत् किसे कहते हैं ? उत्तर - परिणमन करती हुई वस्तु समय-समय में नई-नई उत्पन्न हो रही है। वह की वह नहीं है इसको अतत् भाव कहते हैं। इस दृष्टि से प्रत्येक समय का सत् ही भिन्न-भिन्न रूप है। ३१०, ७६५ प्रश्न ८९ - तत्-अतत् युगल का दूसरा नाम क्या है ? उत्तर- तत्-अतत् को भाव-अभाव युगल भी कहते हैं। सदश विसदृश युगल भी कहते हैं। सत् असत् युगल भी कहते हैं। प्रश्न ९० - तत् धर्म का क्या लाभ है ? उत्तर - इससे तत्त्व की सिद्धि होती है। ३१४,३३१ प्रश्न ९१ - अतत् धर्म से क्या लाभ है ? उत्तर - इससे क्रिया, फल, कारक, साधन, साध्य, कारण, कार्य आदि भावों की सिद्धि होती है। ३१४, ३३१ तत्-अतत् युगल पर नय प्रमाण लगाकर दिखलाओ।। उत्तर - वस्तु एक समय में तत्-अतत् दोनों भावों से गुंथी हुई है। (१) सारी की सारी वस्तु को वही की वही। इस दृष्टि से देखना तत् दृष्टि है।(२) सारी की सारी वस्तु समय-समय में नई-नई उत्पन्न हो रही है इस दृष्टि से देखना अतत् दृष्टि है।(३) जो वही की वही है वह ही नई-नई उत्पन्न हो रही है इस प्रकार दोनों धर्मों से परस्पर सापेक्ष देखना उभय दृष्टि या प्रमाण दृष्टि है तथा (४) दोनों रूप नहीं देखना अर्थात् नवही की वही है - नई-नई है किन्तु अखण्ड है इस प्रकार देखना अनुभय दृष्टि या शुद्ध द्रव्याथिक दुष्टि है। ३३३,३३४,७३४ से ७३७ तक नित्य अनित्य युगल (३) प्रश्न ९३ - नित्य-अनित्य युगल का रहस्य बताओ? उत्तर - वस्तु जैसे स्वभाव से स्वतः सिद्ध है वैसे वह स्वभाव से परिणमनशील भी है। स्वत: सिद्ध स्वभाव के कारण उसमें नित्यपना ( वस्तुपना) है और परिणमन स्वभाव के कारण उसमें अनित्यपना (पर्यायपना अवस्थापना) है। दोनों स्वभाव वस्तु में एक समय में हैं। प्रश्न ९४ - दोनों स्वभावों को एक समय में एक ही पदार्थ में देखने के दृष्टान्त बताओ? उत्तर - (१)जीव और उसमें होनेवाली मनुष्य पर्याय (२)दीप और उसमें होने वाला प्रकाश(३) जल और उसमें होनेवाली कल्लोलें(४) मिट्टी और उसमें होनेवाला घट। जगत का प्रत्येक पदार्थ इसी रूप है। ४११, ४१२, ४१३ प्रश्न ९५ - नित्य किसे कहते हैं ? उत्तर - पर्याय पर दृष्टि न देकर जब द्रव्य दृष्टि से केवल अविनाशीत्रिकाली स्वभाव देखा जाता है तो वस्तु नित्य (अवस्थित ) प्रतीत होती है। ३३९, ७६१ प्रश्न २६ - नित्य स्वभाव की सिद्धि कैसे होती है ? उत्तर - 'यह वही है' इस प्रत्यभिज्ञान से इसकी सिद्धि होती है। ४१४ प्रश्न ९७ - अनित्य किसको कहते हैं ? उत्तर - त्रिकाली स्वतः सिद्ध स्वभाव पर दृष्टि न देकर जब पर्याय से केवल क्षणिक अवस्था देखी जाती है तो वस्तु अनित्य ( अनवस्थित ) प्रतीत होती है। ३४०,७६० प्रश्न ९८ - अनित्य की सिद्धि कैसे होती है ? उत्तर - 'यह वह नहीं है' इस अनुभूति से इसकी सिद्धि होती है। ४१४
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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