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________________ प्रथम खण्ड/द्वितीय पुस्तक प्रश्न ७८ - काल से अस्ति-नास्ति बताओ? उत्तर - वस्तु स्वभाव से ही काल-कालांश रूपबनी हुई है। प्रदेश वही है,स्वरूप वही है। काल से देखना सामान्य दृष्टि, कालांश दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि। जिस दृष्टि से देखना वह काल से अस्ति और जिससे नहीं देखना,वह काल से नास्ति।जो वस्तु सामान्य परिणमन रूप है वही तो विशेष परिणमन रूप है जैसे आत्मा में पर्याय यह सामान्य काल, मनुष्य पर्याय यह विशेष काल। २७४ से २७७ तक, ७५६, ७५७ प्रश्न ७९ - भाव से अस्ति-नास्ति बताओ? उत्तर - वस्तु स्वभाव से ही भाव-भावांश रूप बनी हुई है। प्रदेश वही है,स्वरूप वही है।भाव की दृष्टि से देखना सामान्य दृष्टिभावांश की दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि। जिस दृष्टि से देखो वह भाव से अस्ति-दूसरी नास्ति। जो वस्तु भाव सामान्य रूप है वही तो भाव विशेष (ज्ञान, गुण) रूप है। २७९ से २८२ तक प्रश्न ८० - उपर्युक्त चारों का सार क्या है? उत्तर - वस्तु सत् सामान्य की दृष्टि से द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से हर प्रकार निरंश है और वहीं वस्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा अंशों में विभाजित हो जाती है अत: सांश है। वस्त दोनों रूप है। वह सारी की सारी जिस रूप देखनी हो उसको मुख्य या अस्ति कहते हैं। दसरीको गौण या नास्ति कहते २८४ से २८६ प्रश्न ८१- अस्ति-नास्ति का उभय भंग बताओ? उत्तर - जो स्व (सामान्य या नियोग जिसकी दिनक्षा हो)ो अपित है, वही पर (सामान्य या विशेष जिसकी विवक्षा न हो) से नास्ति है, तथा वही अनिर्वचनीय है। यह उभय भंग या प्रमाण दृष्टि है। २८१ से ३०८ तक तथा ७५९ प्रश्न ८२ - अस्ति-नास्ति का अनुभय भंग बताओ? उत्तर - वस्तु किस रूप से है और किस रूप से नहीं है, यह भेद ही जहाँ नहीं है किन्तु वस्तु की अनिर्वचनीय-अवक्तव्य निर्विकल्प ( अखण्ड दृष्टि है)। वह अनुभय नय या शुद्ध ( अखण्ड) द्रव्यार्थिक नय का पक्ष है। ७५८ प्रश्न ८३ - पर्यायार्थिक नय के नामान्तर बताओ? उत्तर - पर्यायदृष्टि, व्यवहारदृष्टि, विशेषष्टि, भेददृष्टि, खण्डदृष्टि, अंशदृष्टि, अशुद्धदृष्टि, म्लेच्छदृष्टि। प्रश्न ८४ - उभयदृष्टि के नामान्तर बताओ? उत्तर - प्रमाणदृष्टि, उभयदृष्टि, अविरुद्धदृष्टि, मैत्रीभावदृष्टि, सापेक्षदृष्टि। प्रश्न ८५ - अनुभयदृष्टि के नामान्तर बताओ? । उत्तर - अनुभयदृष्टि , अनिर्वचनीयदृष्टि, अवक्तव्यदृष्टि, निश्चयदृष्टि , भेद निषेधकदृष्टि, व्यवहार निषेधकदृष्टि, नेतिदृष्टि, शुद्धदृष्टि, द्रव्यदृष्टि वा द्रव्यार्थिकदृष्टि, शुद्ध द्रव्यदृष्टि, निर्विकल्पदृष्टि, विकल्पातीतदृष्टि, सामान्यदृष्टि, अभेददृष्टि, अखण्डदृष्टि आदि। "तत्-अतत् युगल' (२) प्रश्न ८६ - तत्-अतत् में किस बात का विचार किया जाता है ? उत्तर - नित्य-अनित्य अधिकार में बतलायेहये परिणमनस्वभाव के कारणवस्तु में जो समय-समय का परिणाम उत्पन्न होता है बह परिणाम सदृश है या विदृश्य है या सदृशासदश है। इसका विचार तत्-अतत् में किया जाता है। ३१२ प्रश्न ८७ - तत् किसे कहते हैं ? उत्तर - परिणमन करती हुई वस्तु बही की वही है। दूसरी नहीं है। इसको तत्-भाव कहते हैं। ३१०, ७६४
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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