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ग्रथराज श्री पञ्चाध्यायी
दुःख भोगता है। जो यहाँ शुद्ध भाव करता है वही मोक्ष में निराकुल सुख पाता है। इससे उसके तत्धर्म का ज्ञान होता है। (B] हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि लड़का मर जाता है। घर वाले रोते हैं। जिसके यहाँ जन्म लेता है, वह जन्मोत्सव मनाते हैं। इस पर्याय दृष्टि से पता चलता है कि यहाँ का जीव नष्ट हो गया। वहाँ नया पैदा हुआ। यह प्रत्यक्ष अज्ञानी जगत की अतत् दृष्टि है।(४) आपको क्या यह अनुभव नहीं है कि आप सत् हैं। इससे वस्तु के सामान्य धर्म का परिज्ञान होता है। (B) पर आप जीव है पुद्गल तो नहीं, इससे वस्तु विशेष भी है यह ख्याल आता है। इस प्रकार वस्तु चार युगलों से गुम्फित है, यह सर्व साधारण को प्रत्यक्ष अनुभव होता है। यह जो हमने अनेकान्त का लाभ लिखा है यद्यपि यह विषय इस पुस्तक में नहीं है, इसमें तो केवल वस्तु का अनेकान्तात्मकता का परिज्ञान कराया है, हमने चूलिका रूप से आपकी अनेकान्त के मर्म को जानने की रुचि हो जाये इस ध्येय से संक्षिप्त रूप में लिखा है। अनेकान्त का विषय बहुत रूखा है, अतः लोगों के समझने की रुचि नहीं होती तथा विवेचन भी पंडिताई के ढंग से बहुत कठिन किया जाता है जो समझ नहीं आता। हमने तो सरल देसी भाषा में आपके हितार्थ लिखा है। श्री सद्गुरु देव की जय। ओं. शान्तिा
'अस्ति-नास्ति युगल'(१) प्रश्न ७२ - वस्तु की अनेकान्तात्मक स्थिति बताओ? उत्तर - प्रत्येक वस्तु स्यात् अस्ति-नास्ति, स्यात् तत्-अतत्, स्यात् नित्य-अनित्य, स्यात् एक-अनेक इन चार
युगलों से गुंथी हुई है। इसका अर्थ यह है कि बस्तु अन्य से, क्षेत्र से पास से, भावले अस्ति रूप है वही वस्तु उसी समय द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से,भाव से नास्ति रूप भी है तथा वहीं वस्तु इसी प्रकार अन्य चार युगल रूप भी है। एक दृष्टि से वस्तु का चतुष्टय त्रिकाल एक रूप है। एक दृष्टि से वस्तु का चतुष्टय समय-समय का भिन्न-भिन्न रूप है।
२६२-२६३ प्रश्न ७३ - 'अस्ति-नास्ति' युगल के नामान्तर बताओ? इनका वर्णन कहाँ-कहाँ आया है। उत्तर - अस्ति-नास्ति युगल को सत्-असत् युगल भी कहते हैं। महासत्ता अवान्तरसत्ता युगल भी कहते हैं।
सामान्य विशेष युगल भी कहते हैं, भेदाभेद युगल भी कहते हैं। इसका वर्णन प्रारम्भ में १५ से २२ तक,
मध्य में २६४ से ३०८ तक, अन्त में ७५६ से ७५९ तक आया है। प्रश्न ७४ - महासत्ता के नामान्तर बताओ? उत्तर - महासत्ता, सामान्य, विधि, निरंश, स्व, शुद्ध, प्रतिषेधक, निरपेक्ष अस्ति, व्यापक। प्रश्न ७५ - अवान्तर सत्ता के नामान्तर बताओ? उत्तर - अवान्तर सत्ता, विशेष, प्रतिषेध, सांश, पर, अशुद्ध, प्रतिषेध्य, सापेक्ष, नास्ति, व्याप्य। प्रश्न ७६ - द्रव्य से अस्ति-नास्ति बताओ? उत्तर - वस्तु स्वभाव से ही सामान्यविशेषात्मक बनी हुई है। उसे सामान्य रूप से अर्थात् केवल सत् रूप से देखना ।
महासत्ता और द्रव्य, गुण, पर्याय, उत्पाद, व्यय, धुव आदि के किसी भेद रूप से देखना अवान्तर सत्ता है। प्रदेश दोनों के एक ही है। स्वरूप दोनों का एक ही है। जिस दष्टि से देखते हैं उसको अस्ति या मुख्य कहते हैं और जिस दृष्टि से नहीं देखते उसे नास्ति या गौण कहते हैं। जो वस्तु सत् रूप है वही तो जीव रूप है।
२६४ से २६८ तक। क्षेत्र से अस्ति-नास्ति बताओ? उत्तर - वस्तु स्वभाव से देश-देशांश रूप बनी हुई है। प्रदेश वही है, स्वरूप वही है। देश दृष्टि से देखना सामान्य
दृष्टि है। इससे वस्तुओं में भेद नहीं होता है। देशांश दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि है। जिस दृष्टि से देखना हो वह क्षेत्र से अस्ति दूसरी नास्ति। जो वस्तु देश मात्र है वही तो विशेष देश रूप है जैसे जो देश रूप है वही तो असंख्यात् प्रदेशी आत्मा है।
२७० से २७२ तक