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८. वे अनोखे अभ्यागत
दोपहर दिन शेष था जब यात्रासंघ का यहाँ आगमन हुआ । आचार्य नेमिचन्द्र महाराज अपने संघ सहित, चन्द्रगुप्त बसदि में विराजमान हुए । चामुण्डराय ने अपने पूरे परिकर के साथ, उन सद्य निर्मित वस्त्रावासों में विश्राम किया । यहाँ पूर्व सन्ध्या से एकत्र, सभी आबाल-वृद्ध, समागतों के स्वागत में और व्यवस्था में तत्परता से संलग्न हो गये ।
दूसरे दिन प्रातः काल यहीं, जहाँ तुम अभी बैठे हो, एक विशाल सभा हुई। दूर-दूर के श्रद्धालु श्रावक उस दिन यहाँ उपस्थित थे। आचार्यश्री की मधुर वाणी द्वारा जिनागम का उपदेश श्रवण करने का वह अवसर, कोई भी छोड़ना नहीं चाहता था । प्रवचन के उपरान्त संघस्थ पण्डिताचार्य ने यात्रा संघ का अभिप्राय इस प्रकार कहा
'राजधानी तलकाडु के जिनालय में मातेश्वरी काललदेवी ने आचार्य जिनसेन के महापुराण में, आदि ब्रह्मा भगवान् ऋषभदेव का पावन चरित्र श्रवण किया । सम्राट् भरत के साथ बाहुबली के युद्ध का आख्यान और बाहुबली के अनुपम वैराग्य की कथा, उन्हें विशेष प्रिय हुई | बाहुबली के लोकोत्तर त्याग - तपश्चरण का प्रसंग, बार-बार सुनकर उन्होंने हृदयंगम किया। तभी उस मन्दिर में विराजमान एक मुनिराज से उन्होंने यह भी सुना कि भरत चक्रवर्ती ने बाहुबली की सवा पाँच - सौ धनुष अवगाहना वाली, एक विशाल प्रतिमा, पोदनपुर में स्थापित की थी । किसी पुण्यजीवी को ही उस महाविग्रह के दर्शन प्राप्त हो पाते हैं ।'
'मातेश्वरी के मन में उस महामूर्ति के दर्शन की अभिलाषा जागृत हुई है। उनकी इस पावन इच्छा की पूर्ति के लिए ही उनके आज्ञाकारी सुपुत्र, गंगराज्य के प्रतापी महामात्य, वीरमार्तण्ड चामुण्डराय का, पोदनपुर की धर्मयात्रा के लिए, यह अभियान है । महामात्य
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पुत्र,