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कारण चामुण्डराय को 'शौचाभरण', 'सत्ययुधिष्ठिर', और 'देवराज' आदि अनेक उपाधियों से अलंकृत करके प्रजा जनों ने उसके प्रति अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन किया था ।
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जिनशासन का श्रेष्ठ भक्त तो चामुण्डराय था ही, उसकी मातृभक्ति भी अनुपम थी । दूर देशों तक माताएँ अपने उद्दण्ड बालकों को, मातृभक्ति के आदर्श के रूप में, चामुण्डराय का उदाहरण दिया करती थीं । शैशव में उसके मनोहर रूप-रंग के कारण उसे गोमट नाम से पुकारा जाता था | चामुण्डराय की जननी काललदेवी अभी भी उसके इसी क्षिप्र नाम का उपयोग करती थी । नेमिचन्द्राचार्य महाराज को भी उसका यही नाम अधिक प्रिय था । उसे शैशव के इस नाम से सम्बोधन करनेवाला तीसरा कोई व्यक्ति अब जीवित नहीं था ।
काललदेवी अतिशय श्रद्धालु भद्र महिला थीं । उन्होंने बड़े जतन से अपने बेटे का चरित्र निर्माण किया था । चामुण्डराय की धर्मपत्नी अजितादेवी दयाधर्म का पालन करनेवाली पतिपरायणा नारी थीं । अतिथि सत्कार और चारों प्रकार के दान में उनकी विशेष रुचि थी । उनका पुत्र जिनदेवन सौम्यता और सज्जनता का साक्षात् अवतार ही था । पुत्रवधू का नाम था सरस्वती । उस महिला रत्न का अनिन्द्य सौन्दर्य, उसके अपरिमित गुण, और स्नेहपूर्ण बर्ताव, उसके नाम को सार्थक करते थे ।
सरस्वती अच्छे संस्कारों में पली बढ़ी शिक्षित नारी थी । मैंने सुना था कि वह अत्यन्त निपुण कलापारखी, नृत्य-संगीत की विशारद, अनुकम्पावान और स्नेहपूर्ण स्वभाव की ममतामयी उदार महिला थी । सरस्वती के अंक में सुन्दर और चपल स्वभाव वाला, एक छोटा-सा बालक था, सौरभ ।
आज इसी जिनभक्त श्रावक परिवार की अभ्यर्थना करने का मेरा भाग्य था ।
३४ / गोमटेश-गाथा