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कुमार जिनदेवन स्वतः इस यात्रा-संघ की व्यवस्था कर रहे हैं।'
–'आचार्यश्री नेमिचन्द्र महाराज के संघ सहित विहार करने से इस धर्मयात्रा का आनन्द दुगुना हो उठा है। जो भी श्रावक, स्त्री-पुरुष, त्यागी या गृहस्थ, इस अवसर का लाभ उठाना चाहें, यात्रा-संघ में सम्मिलित होने के लिए महामात्य की ओर से उन्हें सादर निमन्त्रण है। मार्ग में उनकी व्यवस्था और सेवा करके कुमार जिनदेवन अपने आपको भाग्यशाली मानेंगे।' ___-आज यहाँ एकत्र होकर आप सबने संघ का स्वागत किया है, यह आचार्यश्री के प्रति आपकी भक्ति, और महामात्य के प्रति आपकी सम्मान भावना का प्रतीक है । जब-जब महामात्य का आगमन यहाँ हुआ, आपका ऐसा ही सम्मान उन्होंने प्राप्त किया है। पूरा संघ आपके वात्सल्य भाव के प्रति आभारी है। जब तक संघ यहाँ विराजमान है, प्रतिदिन महामात्य के साथ भोजन ग्रहण करने के लिए अजितादेवी ने आपको सादर आमन्त्रित किया है।'
पण्डिताचार्य की स्नेह-सिक्त वाणी से सभी आनन्दित हुए। अनेकों ने मन ही मन पोदनपुर की यात्रा का संकल्प कर लिया। प्रबुद्ध श्रावकों ने कुछ समय और यहाँ विश्राम करने का चामुण्डराय से आग्रह किया। तीर्थ-वन्दना, गुरु-उपदेश और सत्संग की त्रिवेणी उन्हें आकर्षित कर रही थी। आचार्यश्री की चरण-सेवा का लाभ, वे समस्त जन, और कुछ दिनों तक प्राप्त करने के आकांक्षी थे। __ श्रद्धास्पद जननी की संकल्प पूर्ति के लिए अधीर चामुण्डराय, सर्मियों का यह आग्रह टाल न सके। आचार्य की सहमति प्राप्त करके उन्होंने अनुरोध का उत्तर दिया___ 'अन्तिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की समाधि-साधना से पावन यह 'श्रवणबेलगोल' शाश्वत तीर्थ है। सात सौ दिगम्बर मुनिराजों की निर्मोह सल्लेखना से इस चन्द्रगिरि का एकएक कण पवित्र हुआ है। इस तीर्थ की सेवा-सम्हाल के लिए आप सभी की हम सराहना करते हैं। संघ के लिए अधिक समय तक यहाँ ठहरने का आग्रह, हमारे प्रति आपकी स्नेह-भावना का प्रतीक है। इस आग्रह को टालने की सामर्थ्य हममें नहीं है, अतः एक सप्ताह यहाँ ठहर कर हम चन्द्रनाथ भगवान् की पूजन का पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे।'
फिर इस संघ का पोदनपुर के लिए कभी प्रस्थान नहीं हुआ, प्रवासी।
३६ / गोमटेश-गाथा