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से भरा हुआ था। वह परिवार के सदस्य की तरह उसका आदर करती थी। रूपकार सरस्वती की इस उदारता को अपना भाग्य मानकर, अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता था। उसे सरस्वती के व्यवहार में एक साथ ही सहोदरा का स्नेह और मातृत्व की ममता का दर्शन होता था। सरस्वती को 'दीदी' कहकर ही उसने अपने मन की कृतज्ञता का ज्ञापन किया। जिनदेवन को अब वह स्वामी के स्थान पर 'कुमार' सम्बोधन देने लगा। सरस्वती के एक बार सिखला देने पर ही सौरभ के लिए रूपकार अब 'मामा' हो गया।
१२० / गोमटेश-गाथा