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तक्षण का बहुत स्थूल कार्य चल रहा था। मूर्ति को उकेरने के पूर्व अभी वहाँ से बहुत-सा पाषाण कोरकर निकालने की आवश्यकता थी। शिला को रूपाकार प्रदान करके प्रतिमा के रूप में गढ़ने का काम अभी दूर था, पर रूपकार यथाशीघ्र उस मूर्ति के लिए एक प्रादर्श की निश्चित कल्पना कर लेना चाहता था।
गोमटेश-गाथा | ११७