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स्तवन के शब्द बाहुबली के कानों से टकराये । भरत के संक्लेश की चिन्ता उनकी चेतना से तिरोहित हो गयी । साधना ने सफलता का शिखर छू लिया । उपलब्धि के आनन्द से चमकते हुए नेत्र अर्धोन्मीलित मुद्रा में स्थिर हो गये । बाहुबली ने अर्हन्त पद प्राप्त कर लिया । उन्हें केवल - ज्ञान उपलब्ध हो गया । वे सर्वज्ञ हो गये । अनिरुद्ध चेतना का अनन्त आलोक उनके अन्तर में प्रकट हो गया ।
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भरत के आनन्द का सागर सीमा तोड़कर बिखर पड़ा । वे हर्ष से नाच उठे । सभी लोग अर्हन्त बाहुबली की अर्चना में मगन हो गये । माताओं ने स्तवन किया । बहिनों ने गुणगान किया । जयमंजरी ने आरती उतारी। पुत्रों ने चंवर दुराये । प्रकृति उनके अनुपम आनन्द की सहभागी बनकर मुकुलित हो उठी । लताओं पर पुष्प खिल उठे । शाखाएँ फलवती हो गयीं । वन के जीव-जन्तु मोदमग्न होकर विचरने लगे । देवों की मंगल ध्वनि बाहुबली के कैवल्य का समाचार लेकर दिग- दिगन्त में फैल गयी ।
अयोध्या के विजयोत्सव का उत्साह सौगुना हो गया। उस समारोह में सर्वाधिक आनन्दित व्यक्ति का नाम था 'भरत' ।
१०८ / गोमटेश - गाथा