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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१९४
सण्णिस्सुववादवरं, णिव्वत्तिगदस्स सुहमजीवस्स । एयंतवडिअवरं, लद्धिदरे थूलथूले य॥२२७ ।। तह सुहुमसुहुमजेटुं, तो बादरबादरे वरं होदि । अंतरमवरं लद्धिगसुहुमिदरवरंपि परिणामे ॥२३८ ।। अंतरमुवरीवि पुणो, तप्पुण्णाणं च उवरि अंतरियं । एयतवड्डिठाणा,, तसपणलद्धिस्स अवरवरा ।।२३९॥ लद्धीणिव्वत्तीणं, परिणामेयंतवविठाणाओ।
परिणामट्ठाणाओ, अंतरअंतरिय उवरूवरि ॥२४०॥ अर्थ - सूक्ष्मएकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग सबसे स्तोक है। उससे सूक्ष्मएकेन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा है, उससे सूक्ष्मएकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे बादरएकेन्द्रियलब्ध्य पर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा है ॥२३३॥
सूक्ष्मएकेन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग बादरएकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य उपपादयोग की अपेक्षा असंख्यातगुणा है। उससे बादरएकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा है। उससे बादएकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा है और उससे द्वीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोग असंख्यातगुणा है ॥२३४॥
द्वीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकके जघन्यउपपादयोग से बादरएकेन्द्रियनिर्वृत्तिअपर्याप्तक का उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे द्वीन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे द्वीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा है, उससे त्रीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे त्रीन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तक का जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे त्रीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे चतुरिन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका जघन्यउपपादयोग असंख्यातगुणा, उससे त्रीन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोग असंख्यातगुणा और उससे चतुरिन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्टउपपादयोग असंख्यातगुणा है ॥२३५।।
१. धवल पु. १० पृ. ४१४
२. धवल पु. १० पृ. ४१४
३. धवल पु. १० पृ. ४१५-४१६