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पुंसिद्धागोयमाई गंगेयाईनपुंसयासिद्धा । पत्तेयसयंबुद्धा भणियाकरकंडकविलाई ॥ ५८ ॥ (पुसिद्धागोयमाई ) पुरुष लिंगसिद्ध गौतमादि० (गांगेयाईनपुंसयासिद्धा) गंगेयादि जो सिद्ध हुए वह नपुंसकलिंग सिद्ध १० (प्रत्तेयसयंबुद्धा) प्रतेकयुद्धासद्ध और स्वयंबुद्ध अनुक्रमसें (भणिया) कहा ( करकंडु) करकंडु राजा ११ । GI(कविलाई) और कपिलआदि कहे १२ ।। ५८ ॥
तहबुद्धबोहिगुरुबोहिया इगसमयएगसिद्धाय । एगसमएविअणेगा सिद्धातेणेगसिद्धाय ॥ ५९ ॥ RI (तह ) फिर तैसें ही (बुद्धबोहिगुरुबोहिया) बुद्धबोधित सिद्ध हुए वह गुरुके उपदेशसें १३ (इगसमयएगसिद्धाय)
एक समयमें एकही सिद्ध होए एक सिद्ध महावीर आदि १४ (एगसमएविअणेगा) (सिद्धातेणेगसिद्धाय) ओर एक समयमें अनेक सिद्ध होये वह रिषभादि अनेक सिद्ध कहिये १५ ॥ ५९॥ |जइआइहोइपुच्छा जिणाणमगंमिउत्तरंतझ्या । इक्कस्सनिग्गोयस्स अणंतभागोयसिद्धिगओ॥६०॥ 1 (जइआइहोइपुच्छा ) जिस जिस समयपर भगवान्को पुछनमें आवै (जिणाणमग्गमि उत्तरंतइया ) उस उस समय६पर जिनेस्वर महाराजके मार्गमें यह ही उत्तर मिलता है कि (इक्कस्सनिग्गोयस्सअर्णतभागोय) एक निगोदके अनंतमें भागे (सिद्धिगओ) सिद्धोमें गये हैं । ६० ।।
इति नतवत्वप्रकरणं समाप्तम् ।