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________________ ॥ अथ श्रीदंडकप्रकरणं मूलसहितं हिन्दी अनुवादसहितं प्रारभ्यते ॥ नमिउंचउवीसजिणे तस्सुत्तवियारलेसदेसणओ | दंडगपएहिंतेच्चिय थोसामि सुणेहभोभवा ॥ १ ॥ (नमिउंचवीस जिणे ) चोत्री जिनेश्वरोको नमस्कारकरके ( तस्सुत्तवियारलेस देसणओ) उथुंके सूत्रोंमें कहा विचार लेशमात्र कहने से ( दंडगपएहिंतेच्चिय ) दंडग पदकरके उन भगवांनोकी ( थोसामिसुणेहभोभवा ) मैं स्तवना | करताहुं सो हे भव्यप्राणिजीवो तुम सुनो ॥ १ ॥ | नेरइआअसुराई पुढवाईबेइंदियादओचेव । गष्भयतिरियमणुस्सा वंतरजोइसियवेमाणी ॥ २ ॥ ( नेरइआ ) सात नरकको १ दंडक ( असुराई ) असुरादि भुवनपतिका १० दश दंडक ( पुढवाई) पृथ्वी कायादि पांच स्थावरके ५ दंडक ( बेइंदियादओचेव ) दो इंद्रियादि विकलेंद्रिके ३ दंडक (गष्भवतिरिय ) गर्भजतिर्यचका २० मादंडक ( मणुस्सा ) गर्भज मनुष्यका २१ मांदंडक ( वंतर ) व्यंतरका २२ मादंडक ( जोइसिय ) ज्योतिषि देवोका २३ (मादंडक (वेमाणि) और वैमानिक देवोंका २४ मादंडक ऐसे सब मिलकर चोवीश दंडक समज लेना ॥ २ ॥ संखित्तयरीउइमा सरीरमोगाहणायसंघयणा । सन्नासंठाणकसाया लेसइंदीयदुसमुधाया ॥ ३ ॥
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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