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तथा जो वस्तुमध्ये नास्तिपणो न मानियें तो ते वस्तु कदाकालें पर वस्तुपणे अथवा परगुणपणे परिणाम जाय तेथी| कोइवारें जीव ते अजीवपणो पामे अने अजीव ते जीवपणो पामे तो सर्व संकरतादोष उपजे तथा व्यंजन के० प्रकट तानो हेतु तेने योगें छतो धर्म ते फुरे पण जे धर्मनी सत्ता उति न होय ते फुरे नही. जो नास्तिपणो न मानिये तो असत्तापणे फुरे अने जेवार असत्ता स्फुरे तेयारे द्रव्यनो अनियामक के० अनिश्चयपणो थइ जाय, ते माटे सर्व भाव अस्ति नास्तिमयी छ. व्यंजकताना दृष्टांत को छ. जेम कोरा कुंभमां सुगंधतानी सत्ता छे तोज पाणीने योगें वासना प्रगटे छे. जो वस्त्रादिकमां ते धर्म नथी तो तेमां प्रगटतो पण नथी एम सर्वत्र जाणयो. हवे त्रीजो नित्य स्वभाव कहे छे ते जे वस्तुना भाव तेनो अध्यय के० नही टलबो एटले तेमनो तेमज रहेको ते नित्यपणो कहिये तेना वे भेद छ र ते कहे छे.
एका अप्रच्युतिनित्यता द्वितीया पारंपर्यनित्यता ॥ तथा द्रव्याणां अर्ध्वप्रचयतिर्यगुपचयत्वेन तदेव द्रव्यमिति ध्रुवत्वेन नित्यस्वभावः नवनवपर्यायपरिणमनादिभिः उत्पत्तिव्ययरूपोऽनित्यस्वभावः उत्पत्तिव्ययस्वरूपमनित्यम् ॥ १॥
अर्थ-एक अप्रच्युतिनित्यता बीजी पारंपर्यनित्यता तिहां अप्रच्युतिनित्यता तेने कहिये जे द्रव्य ते उध्र्व प्रचय तिर्यक् । प्रमयने परिणमवे ए द्रव्य तेहिज ए ध्रुवतारूप ज्ञान थाय छे एटले सदा सर्वदा त्रणे काले तेहिज एवं जे ज्ञान थाय छे