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पोलकुक्षिबुध्नादिभिः स्वपर्यायैः सद्भावेनार्पितः विशेषतः कुंभः कुंभो भण्यते सन् घट इति प्रथमभंगो भवति एवं जीवः स्वपर्यायैः ज्ञानादिभिः अर्पितः सन् जीवः ॥ अर्थ-ए सप्तभंगी परनी अपेक्षायें नथी ते द्रव्यादिक मध्येज छे यथा स्वधर्म परिणम ते अस्तिधर्म छे अने पर द्रव्यना धर्मे न परिणमबुं ए नास्तिनुं फल छे, ते माटे ए सप्तभंगी ते घस्तुधमै छे, ते विशेषावस्यकथी सप्तभंगी लखिये ६ छैयेंएक विवक्षित वस्तु स्त्र के० पोताने पर्याय सद्भाव के. छतापणे छे अने परपर्याय जे अन्यद्रव्यने परिणमे तेनो , असद्भाव के० अछतापणो परिणमे छे तथा जे छता अथवा अछता पर्याय तेनी छतापणो छे. कोइकपणे अछताफ्णो छे माटे छता अछतापणो पण तेज काले छे. केमके वस्तुमध्ये अनेकधर्म छे ते सर्व केवलीने एकसमय समकाले भासे छे || ते पण वचने भंगांतरेज कही शके अने छद्मस्थने श्रद्धामां तो सर्वधर्म समकाले सद्दहे छ पण छद्मस्थनो उपयोग असंख्यात समयी छे, अनुक्रमे छे. पूर्वापरसापेक्ष छे तेथी सप्तभंगे भासन छे जे वस्तुमा समकाले छे, समकीतिनी श्रद्धामां समकाले छे अने केवलीना भासनमा समकाले छे ते श्रुतज्ञानीना भासनमा क्रमपूर्वक छे. केमके भाषा सर्व क्रमे कहेवाय छे तेथी असत्य थाय तेने जो स्यात्पर्देप्ररुपियें जाणिये तो सत्य थाय माटे स्यात्पूर्वक सप्तभंगी कहिये. द्रव्य गुणपर्याय | स्वभाव सर्व मध्ये छ तेरीतें सहवी ते दृष्टांते करी कहे छे ओष्ठ के. होठ, गायड कांठो, कपाल, तलो, कुक्षिपेटो, बुन पोहोलो इत्यादि स्वपर्यायें करी घट छतो छे, ते घटने स्वपर्याय छतापणे अर्पित करियें सेवारे ते कुंभ कुंभ धर्मे सन के