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छतो छ पण अछतादिक धर्मनी छति सापेक्ष राखबाने स्यात्पूर्वक कहेको एटले स्यात्अस्निघटः ए प्रथम भंगो जाणवो है तथा जीवादिद्रव्यने विषे जीवना ज्ञानादिगुण तेने पर्यायें जीवद्रव्यने नित्यादिस्वभावें करीने स्यात्अस्तिजीवः एम
सर्व द्रव्यने कहेवो. यद्यपि जीव तथा अजीवनो नित्यपणो सरिखो भासे पण ते एनो तेमां नही अने तेनो एमां नहीं। जो पण जीव सर्व एकजातीय द्रव्य छे पण एकजीचमा जे ज्ञानादिगुण छे ते वीजा जीवमां नथी माटे सर्व द्रव्य स्वधर्मेज अस्ति छे. अने परधर्मनन्ति हे एम साइ अस्लिीमनाथन देता ताणवो. | तथा पटादिगतैस्त्वक्त्राणदिभिः परपर्यायैरसद्भावेनार्पितः अविशेषितः अकुंभो भवति सर्वस्यापि । | घटस्य परपर्यायैरसत्वविवक्षायामसन् घटः एवं जीवोऽपि मूर्त्तत्वादिपर्यायैः असत् जीव इति ।
द्वितीयो भङ्गः ॥ | अर्थ-पटने विषे रह्या त्वक् जे शरीरनी चामडीने ढाके, लांबो पथराय इत्यादि पर्याय ते घटना पर्याय नथी, पर है। पर्याय छे पटने विषे रह्या छे, घटनेविषे ए पर्यायनी नास्ति छे तेथी ए पर्यायनो असद्भाव छे ते मादे ए पटना पर्याय
नथी. एम सर्व पर्यायें घट नथी तेवारें पर पर्यायना अछतापणानी विवक्षायें अछतो घट छे, एम जीव पण मूर्तिपणादिक अचेतनादि पर्यायनो जीवमध्ये असत्-अछतापणो तेथी जीव पर पर्याय नास्ति छे. माटे स्यात् नास्ति ए बीजो भांगो जाणवो. केमके परपर्यायनी नास्तितार्नु परिणमन द्रव्यने विषे छे.