________________
आदित्यगतिपरिच्छेदपरिमाणः कालः समयक्षेत्रे एव एष व्यवहारकालः समयावलिकादिरूप इति॥
अर्थ-हवे काल द्रव्यन लक्षण कहे छे जे पंचास्तिकायने परत्वे ए लिंगे तथा पुद्गल खंधने नव पुराणपणे व्यक्त है के० प्रगट छे वृत्ति के० प्रवृत्ति तमे वर्तना कहिये ते वर्तनारूप पर्याय तेने काल कहिये एने प्रदेश नथी ते मादे अस्तिका-1 यपणो नथी ए काल ते पंचास्तिकायने विषे अंतर्भूतपर्याय परिणमन छे, जाते धर्मास्तिकायादिकनो पर्याय छे एम तत्त्वा
वृचिने विषे कह्यो छे. तिहां धर्मास्तिकाय एक द्रव्य छे असंख्यात प्रदेशी छे. लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण छे. एम अध-18 मास्तिकाय पण एक द्रव्य छे. लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशी छे. अनेक जीव द्रव्य ते पण लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशी
छे पण स्व अवगाहना प्रमाण व्यापक छे ते जीव द्रव्य अनंता छे. अकृत सदा छता अखंड द्रव्य छे. सत्चिदानंदमयी छे 8 पण परपरिणामी थवे पुद्गलग्राहक पुगलभोगी थवे प्रतिसमये नवा कर्म बांधवे संसारी थया छे. तेहिज जेवार स्वरूप ग्राहक स्वरूप भोगी थाय तेवा
तेवारे सर्व कर्म रहित थयी परम ज्ञानमयी, परम दर्शनमयी, परमानंदमयी, सिद्ध, बुद्ध, अनाहारी, अशरीरी, अयोगी, अलेशी, अनाकारी, एकांतिक, आत्यंतिक, निःप्र यासी, अविनाशी, स्वरूप सुखनो भोगी, शुद्ध सिद्ध थाय ते माटे अहो चेतन!!! ए पर भाव अभोग्य सर्व जगत्ना जीवनी ऐंठ तेनो भोगववापणो तजी स्वभाव भोगीपणानो रसीवो थयी स्वस्वरूप निर्धार स्वरूप भासन, स्वरूप रमणी, थयी पोताना आनंदने प्रगट करीने निर्मल थाg.
तथा आकाश द्रव्य ते लोकालोक मिलि एक द्रव्य छे, अनंत प्रदेशी छे । अने पुद्गल द्रव्य ते परमाणु रूप छे फेम