SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के परमाणु अनंता छे माटे अनंता द्रव्य छे इहां कोइ पूछे जे प्रदेशना संबंध विना परमाणु द्रव्यने अस्तिकाय किम कह्यो छे ? तेने उत्तर जे परमाणु तो एक अप्रदेशी छे पण अनंता परमाणुची मिलवाना जे कारण ते आ द्रव्य तेणे युक्त छे ते योग्यता माटे अस्तिकाय कह्यो छे तथा काल द्रव्यने उपचारें भिन्न द्रव्यपणो कह्यो छे ते व्यवहारनयनी अपेक्षायें। जे 'मनुष्य क्षेत्र विषे सूर्यनी गतिने परिज्ञाने एटले समयावलिकादिरूपपरिमाणे जे मान तेने व्यवहारथी काल कहिये। इति ए काल मुख्य वृत्तियें तो समय क्षेत्र मध्ये छे अने मनुष्य क्षेत्रथी बाहेर जे जीवो छे तेना आयुष्य पण एज क्षेत्र प्रमाणे सर्वज्ञ देवें कया है तथा सूर्यनोचारते पण जीव पुद्गलनुं प्रवर्तन के कारण के सूर्य ते पण जीव तथा पुद्गल छे | एटले ए काल द्रव्य ते कालपणे भिन्न पिंडपणे ठेस्रो नही उपचारेंज देखो एम मानवो. इहां कोइ कहे जे एक एक द्रव्यने विषे अनेक अनेक पर्याय छे ते कोइ पर्यायने द्रव्यपणो न कह्यो अने एक वर्त्तना पर्यायते विषे द्रव्यनो आरोप शा माटे कखो ? तेने उत्तर ए वर्त्तना परिणति ते सर्व पर्यायने सहकारी हे अने सर्व द्रव्यने छे तेथी मुख्य पर्याय छे माटे एने द्रव्यनो आरोप छे ते पण अनादि चाल छे. एते पञ्चास्तिकायाः सामान्यविशेषधर्ममया एव तत्र सामान्यतः स्वभावलक्षणं द्रव्यव्याप्यगुणपर्यायव्यापकत्वेन परिणामिलक्षणं स्वभावः, तत्र एकं नित्यं निरवयवं अक्रियं सर्वगतं च सामान्यं । नित्यानित्यनिरवयव सावयवः सक्रियताहेतुः देशगतः सर्वगतं च विशेषपदार्थगुण
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy