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________________ i|प्रदेशे अनंतिकर्मवर्गणा लागी छे ते एकेक वर्गणा मध्ये अनंता पद्गल परमाणु के एम अनंता परमाणु जीवसाथे लाग्या* [ छे ते थकी अनंत गुणा पुनल परमाणुं जीवथी रहित छुटा छे. गोलाय असंखिजा, असंखनिगोयओ हवइ गोलो । इक्किकम्मि निगोए, अनंतजीवा मुणेयवा ॥१॥ || अर्थ-लोकांहे असंख्याता गोला छे एफेका गोला मध्ये असंख्याति निगोद छे एकेक निगोदमा अनंता जीव छे.. सत्तरससमहिआ, किर इगाणुपाणुम्मिटुति खुड्डुभवा। सगतिससयतिहुत्तर, पाणुं पुण इगमुहत्तंमि॥१॥ | अर्थ-निगोदिया जीव ते मनुष्यना एक उसासमां सत्तर १७ भव झाजेरा कर छे अने सड़त्रीससो तिहूंतेर ३७७३ | 3 श्वासोच्छास एक मुहूर्तमा थाय. |पणसट्ठिसहस्स पणसय, छत्तिसा इगमुहत्त खुड्भवा । आवलियाणं दो सय, छपन्ना एगखुडुभवे ॥ १॥ | अर्थ-निगोदना जीव एक मुहर्त्तमा ६५५३६ भव करे अने निगोदनो एक भव २५६ आवलीनो छे क्षुल्लक भवनो2 ए प्रमाण छे. अस्थि अनंताजीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो । उवज्जति चयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव ॥१॥ अर्थ-निगोदमां अनंता जीव एहवा छे जे जीव त्रस पणो पहेला किवारें पाम्यां नथी अनंतो काल पूर्वे गयो अने* अनंतो काल जाशे पण ते जीव वारंवार तिहांज उपजे छे अने तिहांज चवेछे एम एक निगोदमा अनंता जीव हे ते CA****CAMACARKAR *HARASOKHARA
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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