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________________ अवगाहनों दान लेनार द्रव्य कोइ नथी माटे अवगाहदान करतो नथी अने पुद्गल द्रव्य मिलवा विखरवारूप क्रिया करे छे तथा कालद्रव्य का करे के भने जीवद्रव्य ज्ञान लक्षण उपयोगरूप किया करे के एम सर्व द्रव्य पोताने परिणामी स्वसत्तानी क्रिया करे के ए द्रव्यत्वपणो को. ४ प्रमेयत्वं केहतां प्रमेयपणो, जे छ द्रव्यमां प्रमेयपो छे तेनो प्रमाण केवली पोताना ज्ञानथी करे छे जे धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकाय एकेक द्रव्य छे अने जीव द्रव्य अनंता छे तेहनी गणति कहे छे संज्ञी मनुष्य संख्याता हे असंज्ञी मनुष्य असंख्याता के नारकी असंख्याता छे देवत्ता असंख्याता के तिर्यच पंचेन्द्री असंख्याता छे केंद्री असंख्याता छे तेन्द्री असंख्याता चौरेंद्री असंख्याता छे ते थकी पृथ्वीकाय असंख्याता अपकाय | असंख्याता ते काय असंख्याता वायुकाच असंख्याता प्रत्येक वनस्पति जीव असंख्याता ते थकी सिद्धना जीव अनंता ते थकी बादर निगोदना जीव अनंत गुणा एटले बादर निगोद ते कंदमूल आदु सूरण प्रमुख एहने सुइने अग्रभागें अनंता जीव छे ते सिद्धना जीवधी अनंत गुणा छे अने सूक्ष्म निगोद सर्वधी अनंत गुणा छे ते सूक्ष्म निगोदनो विचार कहे छे जेटला लोकाकाशना प्रदेश छे तेटला गोला छे ते एकेक गोलामां असंख्याता निगोद छे निगोद शब्दनो अर्थ ए छे जे अनंता जीवनो पिंडभूत एक शरीर तेहने निगोद कहिये ते एकेकी निगोद मध्ये अनंता जीव छे ते अतीत कालना सर्व समय तथा अनागतकालना सर्व समय अने वर्त्तमान कालनो एक समय तेने भेला करी अनंत गुणा करियें एटला एक निगोदमां जीव छे एटले अनंता जीव छे ए संसारी जीव एकेकाना असंख्याता प्रदेश छे अने एकेका
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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