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वीजा पुद्गल तथा धर्मास्तिकायादिक द्रव्य छे ते सर्व जीवमांज गण्या तेवारें संग्रहनय बोल्यो जे असंख्यात प्रदेशी ४ ते जीव एटले एक आकाशना प्रदेश टल्या बीजा सर्वद्रव्य एमां गणाणा नेवारें व्यवहारनय वोल्यो जे विषयलेयी काम से वात संभारे ते जीव इहां धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय आकाश तथा बीजा पुगल सर्प टल्या पण पांचेइन्द्री तथा
मन अने लेश्या ए पुद्गल छे ते जीचमां गणाणा कारणके विषयादिकतो इंद्रियो लेछे ते जीवी न्यारा छे पण इहां । व्यवहार नय मते जीव भेला लीधा छे तेवारें ऋजुसूत्रनय बोल्यो जे उपयोगवंत ते जीव इहां इंद्रियादिक सर्व टल्या पण अज्ञान तथा ज्ञानना भेद टल्या नही हवे शब्द नय बोल्यो जे नामजीव स्थापनाजीव द्रव्यजीव भावजीव इहां
जीवमा गुण-निर्गुणनो भेद पड्यो नही तेवारें समभिरूढ नय बोल्यो जे ज्ञानादि गुणवंत ते जीव तेवारें मतिज्ञान || श्रुतज्ञान इत्यादिक साधक अवस्थाना गुण ते सर्व जीव स्वरूपमा आव्या हवे एवंभूतनय बोल्यो जे अनंतज्ञान अन* तदर्शन अनंत चारित्र शुद्धसत्तावंत ते जीव ए नये जे सिद्ध अवस्थामां गुणहता तेजग्रह्या ए सात नये जीव द्रव्य कह्योoil हवे सात नयें धर्म कहे छे नैगमनय बोल्यो जे सर्व धर्म के केमके सर्व प्राणी धर्मने चाहे छे ए नय अंशरूप धर्मने 51
धर्म एह, नाम कहे हवे संग्रहनय बोल्यो जे वडेराये आदखो ते धर्म एणे अनाचार छोक्यो पण कुलाचारने धर्म * कह्यो व्यवहार नय बोल्यो जे सुखनु कारण ते धर्म एणे पुण्यकरणीने धर्म करी मान्यो ऋजुसूत्रनय मते जे उपयोग 5 सहित वैरागरूप परिणाम ते धर्म कहियें ए नयमां यथा प्रवृत्ति करणना परिणाम प्रमुख सर्व धर्ममां गण्यां ते मिथ्या-||
लीने पण होय हवे शब्दनय बोल्यो जे धर्मर्नु मूल समकित छे माटे समकित तेज धर्म तेवारें समभिरूढनय वोल्यो