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जे जीय अजीब नवतत्व तथा छ द्रव्यने ओलखीने जीव सत्ताध्यावे अजीवनो त्याग करे एहवो ज्ञान दर्शन चारित्रनो,
शुद्ध निश्चय परिणाम ते धर्म ए नये साधक सिद्धना परिणाम ते धर्म पणे लोधा एवं भूतनय बोल्यो जे शुक्लध्यान द रूपातीतना परिणाम क्षपकश्रेणी कर्म क्षयना कारण ते धर्म जे जीवनो मूलस्वभाव ते वस्तुधर्म जे मोक्षरूप कार्यने ।
करे ते धर्म ए साते नयें धर्म कह्यो. R हवे सात नये सिद्धपणो कहे छे नैगमनयने मते सर्वजीव सिद्ध के केमके सर्वजीवना आठरुचकप्रदेश सिद्ध |
समान निर्मल छे माटे, संग्रहनय कहे जे सर्वजीवनी सत्ता सिद्धसमान छे एणे पर्यायार्थिकनये करी कर्म सहित न अवस्था ते टालीने च्यार्थिक नयें करी अवस्था अंगीकार करी तेवारे व्यवहारनय बोल्यो जे विद्या लब्धि प्रमुख गुणे करी सिद्ध थयो ते सिद्ध ए नये बाह्य तप प्रमुख अंगीकार कस्या हवे ऋजुसूत्रनय बोल्यो के जेणे पोताना, आत्मानी सिद्धपणानी सत्ता ओलखी अने ध्याननो उपयोग पण तेज वर्ते छे ते समये ते जीव सिद्ध जाणयो ए नये । | समकेति जीव सिद्ध समान छ एम कर्जा हवे शब्दनय बोल्यो जे शुद्ध शुक्लध्यान परिणाम नामादिक निक्षे ते सिद्ध तेवार समभिरूढनय बोल्यो जे केवलज्ञान केवल दर्शन यथाख्यात चारित्र ए गुणे सहित ते सिद्ध जाणवा ए नये || तेरमां चउदमां गुणठाणाना केवलीने सिद्ध कह्या अने एवंभूतनय कहे छे के जेना सकल कर्मक्षय थया लोकने अंते "विराजमान अष्टगुण संपन्न ते सिद्ध जाणवा एरीते सिद्ध पर्दै सात नय कह्या एम सात नय मिल्या समकेति छे अने जे