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________________ ७० | गणितानुयोग : प्रस्तावना ३५५ -=३+११३+११३व्यास) यदि व्यास में स्थित प्रदेश ३५५ क2 मान लो वृत्त की परिधि "प", व्यास "व्या", क्षेत्रफल "क्षे", मान r=V१० लिया गया है। धवला में शुद्ध रूप में चाप "चा", चाप-कर्ण "क", बाण "ब", एवं त्रिज्या "त्रि" हो तो -है', जो निम्नलिखित रूप में पढ़ा जाता है (i) प=/१० (व्या) (ii) क्षे= प० व्या क=V४ बा (व्या-बा) (iv) बा= (व्या-Vव्या-क') (v) चा=V६ बा+क राशि असंख्यात हो तो ग का मान २१३ निकल आता है । यही (vi) व्या = ( बा+r);बा सूत्र चीन में त्सु-चुंग शिह (Tsu Chung Ohih) (ल० ४७६ ई०) को ज्ञात था। पकों के बीच किमी वत्त की तिलोयपण्णत्ति में निम्नलिखित सूत्र प्राप्त हैं। वहाँ परिधि के भाग संवादी चापों के बीच के अन्तर सांद्रों के घनफल, लम्बत्रिपाश्वों के रूप में विभिन्न प्रकार के के आधे होते हैं। आधार लेकर प्राप्त किये गये हैं। वातवलयादि के भी घनफल (viii) बा=/चा-क: ६ निकाले गये हैं । ये राजू और योजन के पदों में प्राप्त हैं। ये सभी सूत्र जम्बू द्वीप समास में भी उपलब्ध हैं। (i) प==V व्याx१० ये ही सूत्र सूर्यप्रज्ञप्ति, करण भावना, उत्तराध्ययन सूत्र में व्या ५ व्या (ii) क्षेपxxव्या भी हैं जहाँ गोल के खण्ड समान ईषत् प्राग्भार का विवरण भी ४ =V१० त्रि' मिलता है। (iii) समवर्तुल रंभ (right oircular cylinder) महावीराचार्य द्वारा भी इन्हीं सूत्रों की पुनरावृत्ति हुई है का घनफल = आधार का क्षेत्रफल ऊँचाई। (बादर) चा=V५बा+क. (iv) (चतुर्थभाग चाप का चाप कर्ण) =(१) ४२ (सूक्ष्म) चा=V६बा+क. __(v) [(चतुर्थ भाग परिधि चापकर्ण)*x] सिकन्दरिया के हेरन (ल० २००) ने परिधि खण्ड को अर्धवृत्त से कम लेकर निम्नलिखित सूत्र निकाला : = [चतुर्थ भाग परिधि] = V४ बा+क+1 बा अथवा /व्या 2 Vश+क+{V४ बा+क' -कवा (i) क = [(इ)- (यादा)] चीनी छेन हुओ (Chen Huo) (ल० १०७५ ई०) ने इस सूत्र को निम्न रूप में रखा : चा = क + बा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति संग्रह में उसे निम्न रूप में दिया है : क=V४ बा (व्या-बा) (vii) चा =२ [(व्या+बा]-व्या ] जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति संग्रह में निम्न रूप में है च==V६ (बा)+क सूर्यप्राप्ति, आदि ग्रन्थों में 7 का बादर मान ३ तथा सूक्ष्म १ अ०३, श्लो० ११. २ ग. सा० सं०, ७.४३, ७३ ॥ ३ हीथ, भाग २, पृ० ३८१, (१९२१) ४ धवला, भा०४, १, ३, ३, पृ०४२ ५ कूलिज (१९४०), पृ० ६१; नीधम और लिंग (१९५६), ६ ति०प० न०, पु०२४-३६. मिकामी (१९१३). ७ ति०५०,४६,४६. * ति० ५०,४७० बिही, ४१८० जी०प्र०, २२३, ६६ आदि $ वही, ४.१८१, ज० द्वी०प्र०,२२४, ४.२६ ६१०
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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