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६८ | गणितानुयोग : प्रस्तावना
यहाँ ५ का सम्बन्ध पांचवें नर्क से है। जब कभी धोणि की संख्या इ हो तो योग का सामान्य सूत्र
यो- "[(ग+इ)प्र—(इ+१)प्र+२आ] अन्य सूत्र हैं यो= [(ग-१) प्र+आग नारकीबिलों सम्बन्धी दो सूत्र और हैं :1 यो_गप्र+ २गआ--गप्र
(८) इसी प्रकार अन्यत्र स्थलों में उपरोक्त एवं शेष सूत्रों का प्रयोग है। विशद विवरण के लिए गोम्मटसारादि की कर्णाटवृत्ति एवं जीवतत्व प्रदीपिका टीकाएँ दृष्टव्य हैं। उपरोक्त शोध का विषय है जो श्वेताम्बर आम्नाय के करणानुयोग ग्रन्थों के गणित से तुलना रूप हो सकता है। धाराएं एवं अल्पबहुत्व (Sequences and Comparability)
विभिन्न रचना-राशियों द्वारा अस्तित्वशील राशियों की स्थिति निश्चयन धाराएँ एवं अल्पबहुत्व करते हैं। व्यासों, क्षेत्रफलों आदि से उत्पन्न धाराओं का अल्पबहुत्व तिलोयपण्णत्ति में उपलब्ध
यो (ग'-ग)प्र+गआ आ.
२२' गुणोत्तर श्रेणि का योग निकालने हेतु गो- (वि) "-१ आ
वि-१ जहाँ वि, विशेष है, जो गुणकार रूप प्रत्येक अगले पद को गुणित करता चलता है।
अनि त समीकरणों का उपयोग कर्मग्रन्थ में कहीं-कहीं हुआ है। यहाँ आदि धन को ध... मध्यम धन को ध, तथा उत्तर धन को ध_ लिखेंगे। शेष संकेत उपरोक्त लेते हुए निम्न
प्रकार के सूत्र प्राप्त होते हैं जो कर्मग्रन्थों से सम्बन्धित हैं । यहाँ ध=यो मान लेंगे।
धा+धत = यो
राशि सिद्धान्त में रचना-राशियों का बड़ा महत्व है क्योंकि उनके द्वारा अस्तित्वशील राशियों का मान बतलाने में सुविधा होती है। धाराओं की भी इसी प्रकार रचना की जाती है और उनमें उत्पन्न रचना-राशियों द्वारा अस्तित्वशील राशियों की स्थिति स्पष्ट करते हैं। त्रिलोकसार में वृहद्धारा परिकर्म से संकेत मात्र धाराओं का विवरण लिया गया है, किन्तु यह वृहद्धारा परिकर्म ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है। सम्भवतः दक्षिण के शास्त्र भण्डारों में प्राप्त हो सके। ये धाराएँ सुक्रमबद्ध हैं और निम्न रूप में संक्षेप में वर्णनीय हैं-सभी केबलज्ञान राशि तक पहुँचाती हैं। किन्तु इनकी रचना भिन्न-भिन्न प्रकार द्वारा की जाती है । इस प्रकार त्रिलोकसार में १४ धाराओं का वर्णन है। इस सम्बन्ध में विशेष अध्ययन हेतु लक्ष्मीचन्द्र जैन का शोध लेख दृष्टव्य है। यहाँ मानलो गच्छ (ग), धारा (धा), केवल ज्ञान अविभाग प्रतिच्छेद राशि (के) तथा सदस्यता प्रतीक 6 हो तो निम्न रूप में धाराओं का विवरण हो जाता है । प्रतीक नाम
सामान्य पद धा सर्वधारा
[१+(ग-१)] धा समधारा
[२+(ग-१)] विषमधारा
[१+(ग-१)]
धन Xग= यो
[{(ग) प्र} xआ] x ग= यो ( आ१ )ग = यो
पसंख्येय-प्र
धा
१ ति० प० भाग १, २०७४, २.८१ ३ गो० सा० जी०,४६, १२१-१२४
" , , ४६, १२३ ति०प० ग० श्लोक, ४.२५२५-५.२७७ ६ जैन, एल० सी० (१९७७) आई० जे० एच० एस०, १२.१
२ वही, ३-८०, देखिये सरस्वती (१९६१-६२) ४ त्रि० सा०, गा० १६४ ६ वही, ४६, १२२/६ ८ त्रि० सा०, गाथा १४-५२ तथा ५३