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________________ ६६ | गणितानुयोग : प्रस्तावना हैं, इसे २ के छठवें वर्ग और पाँचवे वर्ग के गुणन द्वारा प्राप्त प्रकरणों में क्रमादि का सूचक है। अनेक जैन ग्रन्थों में गणना के किया जाता है। अथवा उसे २ के द्वारा ६६ बार छेदा जा अनेक स्थानों का विवरण है। व्यवहार सूत्र में गणना स्थान पद सकता है। इसी संख्या को २४वें स्थान के ऊपर और ३२वें का उपयोग है । अंकलिपि और गणित लिपि शब्द समवायांग सूत्र स्थान के नीचे भी बतलाया गया है। में हैं। विभिन्न प्रकार की लिपि की सूची श्यामार्य (ल० १५१ उत्तराध्ययन सूत्र में किसी भी गणितीय राशि की घातों को ई० पू०) के प्रज्ञापना सूत्र में है । काष्ठकर्म में प्रयुक्त वर्णमाला के दर्शाने की विधि स्पष्ट है। किसी भी राशि की दूसरी घात को रूपों तथा पुस्तक कर्म में प्रयुक्त वर्णमाला के बीच भेद पाया गया वर्ग, तीसरी घात को घन, चौथी घात को वर्ग-वर्ग, छठवीं घात है। इस प्रकार भारतीय संख्या पद्धति के मूल उद्गम तथा विकास को सुनिश्चित करने हेतु केवल पेलियोग्राफिक साक्ष्य पर को धन वर्ग और बारहवीं घात को धन-वर्ग-वर्ग कहा है। निर्भर रहना उचित नहीं होगा। षट्खंडागम में, २ का तीसरा बगितसंगित (२५६)258 प्राप्त होता है। धवला में घातांक के सभी नियमों का उपयोग जैन साहित्य में पारिभाषिक शब्दावलि में चौथे स्थानमान है। कोटि कोटि-कोटि और कोटि-कोटि-कोटि-कोटि के बीच के ऊपर स्वाभाविक समूहन और पुनर्समूहन है। पदों में दसों, शतों, सहस्रों और कोटियों आदि का महत्व है। अंक स्थाने ही संख्या (२)(२) और (२)(२) के बीच में स्थित है। यही द्वारा ७६४ स्थानमानों में संख्या (८४,००,०००)18 निरूपित है [(१०)] और [(१०)]* के बीच स्थित है। गोम्मटसार जहाँ ८४,००,००० को पूर्वी अनुयोगद्वार सूत्र में बतलाया है। में इसे इसे शीर्ष प्रहेलिका भी कहा है ।' षटखंडागम में स्थानमान पद्धति द्वारा संख्याओं को निरूपित ७६,२२,८१,६२,५१,४२,६४,३३,७५,६३,५४,३६,५०,३३६ रूप में दर्शाया है। यह मनुष्यों के निवास का क्षेत्रफल बतलाती किया गया है। उदाहरणार्थ, चउवण्णम् (चौवन), अट्ठोत्तर सदम् (एक सौ आठ), कोडि (करोड़), इत्यादि । हेमचन्द्र (ल० १०८६ ई०प०) ने यमल शब्द का उपयोग तिलोयपण्णत्ति में अचलात्म अथवा (८४)31 - (१०)90 वर्षों किया। (i) आठ स्थानमानों के समूह से १ यमल पद बनता है को ८४/३१/६० रूप में दिया है।' जिससे परिभाषित संख्या २४वें स्थान से ऊपर और ३२वें स्थान धवला में अनेक प्रकार से संख्याओं के निरूपण का उल्लेख से नीचे बनती है। (ii) त्रियमल पद का अर्थ छठवां वर्ग और है। साथ ही उसमें शत, सहस्रकोटि शब्दों का प्रयोग है।10 एक चतुर्यमल पद का अर्थ आठवां वर्ग होता है। इससे ज्ञात होता प्राचीनग्रन्थ से ६१,६८,०८,४६,६६,८१,६४,१६,२०,००,००,००० है कि राशि छठवें वर्ग और आठवे वर्ग के बीच स्थित है । धवल धवलाकार ने निम्न रूप में प्रस्तुत किया हैग्रन्थों के समान्तर विवरण से इसे स्पष्ट किया जा सकता है। गयणट्ठ-णय कसाया चउसट्ठि नियंक वसुखरा दम्वा । साथ ही द्वितीयवर्ग का अर्थ क(२) = क होता है। इसी प्रकार चायाल वसुणमाचल पयट्ठ चन्दो रिदू कमसो ॥1 द्वितीय सूत्र का अर्थ क(3) = का होता है। जैनाचार्यों द्वारा आवश्यकतानुसार यह विधि विकसित हुई प्रतीत होती है, क्योंकि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। स्थानमान पद्धति (Place-value Notation) आश्चर्य है जिस ऋषिमण्डल ने यह आविष्कार किया उन्होंने स्थान को प्राकृत में ठाण कहते हैं । इसका अत्यधिक उपयोग अपना नाम नहीं दिया। धवला में जो शैलियाँ दी गई हैं वे संस्कृत जैन साहित्य में हुआ है। यह आकाश में या श्रेणि में, आदि साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं। १ अ० द्वा० सू०, गाथा १४२. ३ गो० सा० क० (अंग्रेजी), पृ० १०४ '५ सम० सूत्र, गाथा १८ ७ हेमचन्द्र द्वारा निरूपित गाथा ११६ ६ ति०५०, गाथा ४, ३०८ ११ धवला, भाग ३, पृ० २५५, १, २, ४५, ७१ २ उ० सू०, (३०; १०, ११). ४ दत्त (१९२६)। ६ प्र० सूत्र, गाथा ३७ ८ षट् ० १२.६, १.२.११ आदि १० धवला भाग ३, पृ०६८, १९, गाथा ५२, याथा ५३, पृ०१०० देखिये दत्त (१९३५) पृ० २७ आदि ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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