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________________ परिशिष्ट २: प्रमाणांगुल गणितानुयोग ७५६ ७. ५०-एएसि णं सूईअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरे. ७. प्र०-भगवन् ! इन सूच्यंगुल आदि में कौन किससे अल्प हितो अप्पे वा-जाव-विसेसाहिए वा ? है, कौन किससे अधिक है ? तथा कौन किससे विशेषाधिक है ? उ०-सव्वत्थोवे सूईअंगुले उ०-इनमें सबसे कम सूच्यंगुल है, पयरंगुले असंखेज्जगुणे उससे असंख्यातगुण प्रतरांगुल है, घणंगुले असंखेज्जगुणे से तं उस्सेहंगुले उससे असंख्यातगुण धनांगुल है। इस प्रकार यह उत्सेधांगुल प्रमाण है। पमाणंगुले प्रमाणांगुल८. ५०-से कि तं पमाणंगुले ? ८. प्र०-प्रमाण अंगुल क्या है ? उ०-पमाणंगुले-एगमेगस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स उ.-(प्रमाणांगुल इस प्रकार है-) एक-एक चातुरन्त अट्ठ सोवण्णिए कागिणिरयणे दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए चक्रवर्ती राजा का अष्ट सुवर्ण प्रमाण एक काकिणी रत्न होता अहिगरणिसंठाणसंठिए पण्णत्ते। है। वह काकिणी रत्न छह तल (चारों दिशाओं की ओर के ४ तल, तथा ऊपर और नीचे =यों छह तल) वाला उसकी.१२ कोटि तथा आठ कणिकाएँ होती हैं, सुनार की एरण जैसा उसका आकार होता है। तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुल विक्खंभा उस काकिणी रत्न की एक कोटि उत्सेधांगुल प्रमाण चौड़ाई होती है। तं समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं; तं सहस्स- इसकी एक कोटि का जो उत्सेधांगुल है, वह श्रमण भगवान गुणं पमाणंगुलं भव महावीर का अर्धांगुल प्रमाण है। और उस अर्धांगुल से हजार गुणा एक प्रमाणांगुल होता है । एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दो पादा, इस अंगुल प्रमाण से छ अंगुल का एक पाद, दो पाद अथवा दुवालसअंगुलाई विहत्थी, बारह अंगुल की एक वितस्ति । दो विहत्थीओ रयणी, दो वितस्ति की एक रत्नि। दो रयणीओ कुच्छी। दो रनि की एक कुक्षि । दो कुच्छीओ धणू, दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि दो कुक्षि का एक धनुष और दो हजार धनुष का एक गव्यूत गाउयाई जोयणं। (गाऊ) एवं चार गव्यूत का एक योजन होता है। प०-एएणं पमाणंगलेणं कि पओयणं?: प्र०--इस प्रमाण अंगुल से क्या प्रयोजन है। उ०-एएणं पमाणंगुलेणं उ०-इस प्रमाण अंगुल से रसप्रभा पृथ्वी के काण्डों का, पुढवीणं कंडाणं, पायालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं, पाताल कलशों का, भवनपति देवों के भवनों का, नरकों के निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं प्रस्तटों के अन्तर में स्थित भवन प्रस्तटों का, नरकावासों का, विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं, नरकावासों की पंक्तियों का, नरकों के प्रस्तटों का, सौधर्म आदि टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पदभाराणं विजयाणं कल्पों का, उनके विमानों का, उनकी विमान पंक्तियों का, विमान वक्खाराणं वासाणं वासहराणं वासहरपव्वयाणं । प्रस्तटों का, छिन्न टंकों का, कूटों का, मुण्ड पर्वतों का, शिखर वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं वाले पर्वतों का, आगे की ओर कुछ नमे हुए पर्वतों का, विजयों आयाम-विक्खंभोच्चत्तोवेह-परिक्खेवा मविज्जंति । का, वक्षस्कारों का, वर्षों का, वर्षधरों का, वर्षधर पर्वतों का, समुद्र तट की भूमियों का, वेदिकाओं का, द्वारों का, तोरणों का, द्वीपों का, समुद्रों का आयाम-विष्कंभ-उच्चत्व-उद्वेध (अवगाह) परिक्षेप = परिधि-ये सब मापे जाते हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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