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________________ ०५८ परिशिष्ट : २ । उत्सेधांगुल के प्रकार अट्ठ उस्सह सण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया। आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका से एक श्लक्ष्णश्लक्षिणका, अट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू । आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका से एक ऊर्ध्वरेणु, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू । आठ ऊर्ध्वरेणु से एक त्रसरेणु, अट्ट तसरेणूओ सा एगा रहरेणू।। आठ त्रसरेणु से एक रथरेणु, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुयाणं मणुयाणं से एगे बालग्गे।। आठ रथरेणु प्रमाण देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुख्याणं मणुयाणं वालग्गा हरिवास- देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों के आठ बालाग्र प्रमाण हरिवर्षरम्मगवासाणं मणुयाणं से एगे बालग्गे। रम्यवर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । अट्ट हरिवास-रम्मगवासाणं मणुयाणं बालग्गा हेमवय हेरण्ण- हरिवर्ष-रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के आठ बालाग्र प्रमाण हेमवतवयवासाणं मणुयाणं से एगे बालग्गे। हेरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। अट्ट हेमवय हेरण्णवयवासाणं मणुयाणं बालग्गा, हेमवत-हैरण्यवत के मनुष्यों के आठ बालाग्र प्रमाण पूर्वविदेह पुव्वविदेह अवरविदेहाणं मणुयाणं से एगे बालग्गे। एक अपर विदेह के मनुष्यों का एक बालान"। अट्ट पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुयाणं बालग्गा भरहेरवयाणं पूर्वविदेह-अपर विदेह के मनुष्यों के आठ बालान प्रमाण मणुयाणं से एगे बालग्गे। भरत-ऐरवत के मनुष्यों का एक बालान। अट्ठ भरहेरवयाणं मणुयाणं बालग्गा सा एगा लिक्खा। भरत-ऐरवत के मनुष्यों के आठ बालाग्र प्रमाण की एक लिक्षा होती है। अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया । आठ लिक्षा प्रमाण एक यूका, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे । आऊ यूका प्रमाण एक यवमध्य, अट्ठ जवमझे से एगे उस्सेहंगुले । आठ यवमध्य का एक उत्सेधांगुल, एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाई पादो । उसी क्रम से छह अंगुलों का एक पाद होता है, बारस अंगुलाई विहत्थी। बारह अंगुल (२ पाद) की एक वितस्ति, चउवीसं अंगुलाई रयणी। चौबीस अंगुल की एक रयणी रत्नि, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी। अड़तालीस अंगुल की एक-एक कुक्षि, छण्णउई अंगुलाई से एगे दंडे इ वा, घणू इ वा, जुगे इ वा, छियानवे अंगुल का एक दण्ड, इसी प्रमाण को एक धनुष, नालिया इ वा, अक्खे इ वा, मुसले इ वा। एक युग, एक नालिका, एक अक्षा तथा एक नालिका भी कहते हैं। एएणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउयं । __ इस धनुष प्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत (गाऊ) चत्तारि गाउयाई जोयणं । तथा-चार गव्यूत (गाऊ-क्रोश) का एक योजन होता है। ५. ५०-एएणं उस्सेहंगुलेणं किं पओयणं? ५. प्र०-भगवन् ! इस उत्सेध अंगुल का प्रयोजन क्या है ? उ०-एएणं उस्सेहंगुलेणं गैरइय-तिरिक्ख जोणिय-मणूस- उ०-इस उत्सेधांगुल से नारक-तिर्यच-मनुष्य और देवों के देवाणं सरीरोगाहणाओ मविज्जंति । शरीर की अवगाहना नापी जाती है । -अणु० सु० ३३०-३४६ उत्सेध अंगुल के प्रकार उत्सेधांगुल के प्रकार६. से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा ६. यह उत्सेधांगुल संक्षेप में तीन प्रकार का कहा है, यथा(१) सूईअंगुले, (२) पयरंगुले, (३) घणंगुले । (१) सूच्यं गुल, (२) प्रतरांगुल और (३) घनांगुल । (१) अंगुलायया एगपएसिया सेढी सूईअंगुले। (१) एक अंगुल लम्बी तथा एक प्रदेश मोटी जो नमःप्रदेश श्रेणी है, उसका नाम सूच्यंगुल है । (२) सूई सूईए गुणिया पयरंगुले। (२) सूची को सूची से गुणित करने पर प्रतरांगुल बनता है। (३) पयरं सूईए गुणियं घणंगुले । (३) सूची से गुणित प्रतरांगुल-पनांगुल कहलाता है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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