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________________ सूत्र ३-४ परिशिष्ट २ : माप-निरूपण गणितानुयोग ७५७ १०-से गं असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? प्र०-क्या वह व्यावहारिक परमाणु तलवार या क्षुर (छुरे) की धार का अवगाहन (उन पर आक्रमण) कर सकता है। उ.-हंता ! ओगाहेज्जा। उ०-हाँ ! कर सकता है। ५०-से गं तत्थ छिज्जेज्ज वा, भिज्जेज्ज वा ? प्र०-क्या वह उनसे छिन्न (दो टुकड़े) अथवा भेदा जा सकता है ? उ०-नो इण8 सम?', नो खलु तत्य सत्थं कमति । उ०-ऐसा संभव नहीं ! उसके ऊपर शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ता। प०-से गं तत्यं अगणिकायस्स मज्झ मज्मेणं बोईवएज्जा? प्र०-क्या वह (व्यावहारिक परमाणु) अग्निकाय के मध्य भाग से निकल सकता है ? उ०-हंता ! बीईवएज्जा। उ०-हाँ ! निकल सकता है। प०-से गं तत्थ डहेज्जा ? प्र०-क्या वह अग्निकाय से जल जाता है ? उ०-नो इण8 सम?, नो खलु तत्थ सत्यं कमइ । उ०-नहीं, ऐसा सम्भव नहीं है । ५०-से णं पुक्खल संवट्टस्स महामेहस्स मज्ज्ञ मज्झणं बीई- 'प्र०-क्या वह पुष्कल संवर्तक महामेघ के बीचोबीच निकल वएज्जा? जाता है ? उ०-हंता ! वोईवएज्जा। उ०-हाँ ! निकल जाता है। प०-से णं तत्थ उदउल्ले सिया ? प्र०-क्या वह पानी से गीला हो जाता है ? उ०-नो इण8 सम8, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । उ०-नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं (ऐसा सम्भव नहीं)। प०-से णं गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ? प्र०-क्या वह गंगा महानदी के प्रवाह के बीच से (प्रति स्रोत से) शीघ्र जा सकता है ? उ०-हता ! हव्वमागच्छेज्जा। उ०—हाँ ! जा सकता है । प०-से णं तत्थ विणिधायमावज्जेज्जा? प्र०-क्या वह प्रतिस्रोत में चलने से प्रतिस्खलना को प्राप्त होता है ? उ०-नो इगट्ठ सम? । नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । उ०-नहीं! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प०-से गं उदगावत्तं वा उदबिंदु वा ओगाहेज्जा ? प्र०-क्या बह उदकावर्त (जल भ्रम) से अथवा उदक बिन्दु में अवगाहित हो सकता है ? उ०-हंता ! ओगाहेज्जा। उ० हाँ ! हो सकता है। ५०-से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज्ज वा? प्र०-तो क्या वह वहां सड़ जाता है ? या जलरूप में परि णत हो जाता है ? उ०-नो इण8 सम? । नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । उ०-नहीं ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ? एत्थ संगहणी गाहा यहाँ संग्रहणी गाथा हैसत्येण सुतिखेण वि छत्तु भेत्तु व जं किर न सका। केवलज्ञानियों ने कहा है-परमाणु सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी तं परमाणु सिद्धावयंति आई पमाणाणं ॥ छेदा-भेदा नहीं जा सकता। यह परमाणु प्रमाणों में आदि प्रमाण है, (अर्थात सभी प्रमाणों की गणना इसी आधार पर की जाती है)। ४. अणंताणं वावहारियपरमाणु पोग्गलाणं समुदय-समितिसमा- ४. अनन्तानन्त व्यावहारिक परमाणु पुद्गलों के संयोग से जो गमेणं सा एगा उस्साहसहिया इ. वा, सहसण्हिया इ वा, उत्पन्न होता है, वह एक उत्पलक्ष्णश्लक्ष्णिका है। श्लक्ष्णउड्ढरेणु इ वा, तसरेणू इवा, रहरेणू इ वा । श्लक्ष्णिका, ऊर्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु आदि क्रमशः जानना चाहिए।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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