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सूत्र २
माप-निरूपण :-क्षेत्र-प्रमाण प्ररूपण
गणितानुयोग
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२. ५०-से कि तं अंगुले ?
२. प्र०- अंगुल का स्वरूप क्या है ? उ०-अंगुले तिविहे पण्णत्ते, तं जहा
उ०--अंगुल तीन प्रकार का कहा है, यथा(१) आयंगुले, (२) उस्सेहंगुले, (३) पमाणगुले। (१) आत्मांगुल, (२) उत्सेधांगुल, (३) प्रमाणांगुल । प०-से किं तं आयंगुले ?
प्र०-आत्मांगुल क्या है ? उ०-आयंगुले-जे ण जया मणुस्सा भवंति, ते णं तया उ.-जिस काल में जो मनुष्य होते हैं, उनकी अपनी अंगुल
अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं; नवमुहाई आत्मांगुल है । उसकी बारह अंगुल प्रमाण का एक मुख होता है। पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणिए पुरिसे माणजुत्ते भवइ, नौ मुख-प्रमाण एक पुरुष होता है । द्रोणी प्रमाण पुरुष प्रमाण
युक्त होता है।' अद्धभारं तुलमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ ।
अर्द्धभार प्रमाण तुला हुआ पुरुष (तराजू में बैठा हुआ पुरुष
अर्द्धभार प्रमाण तुलने पर) उन्मानयुक्त होता है । एत्य संगहणी गाहाओ
संग्रहणी गाथाएँमाणुम्माणपमाणजुत्ता लक्खण-वंजण-गुणेहि उववेया। मान-उन्मान-प्रमाण से युक्त, लक्षण (शंख, स्वस्तिक आदि) उत्तमकुलप्पसूया उत्तमपुरिसा मुणेयब्वा ॥ व्यंजन (तिल मष आदि) तथा गुणों (औदार्य गांभीर्य आदि) से
सम्पन्न, उत्तम कुल में उत्पन्न पुरुष उत्तम पुरुष माने जाते हैं । होंति पुण अहिय पुरिसा, अट्ठसयं अंगुलाण उम्बिद्धा ॥ ये उत्तम पुरुष १०८ अंगुल प्रमाण ऊँचे होते हैं। अधम छण्णउइ अहमपुरिसा, चउहत्तर मजिनमिल्ला उ॥ पुरुष ६६ अंगुल तथा मध्यम पुरुष १०४ अंगुल ऊँचे होते हैं । हीणा वा अहिया वा; जे खलु-सर-सत्त-सारपरिहीणा ॥ ये हीन पुरुष तथा अधिक (मध्यम) पुरुष जो कि स्वर-सत्त्वते उत्तमपुरिसाणं, अवसा पेसत्तणमुर्वेति ॥ सार-शुभ पुद्गलों से हीन होते हैं वे पराधीन रहकर उत्तम पुरुषों
का प्रेष्यत्व-सेवा-चाकरी करते हैं। एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पादो,
इस अंगुल प्रमाण से छह अंगुल का एक पाद, दो पादा विहत्थी,
दो पाद की एक वितस्ति, दो विहत्थीओ रयणी,
दो वितस्ति की एक रत्नि, दो रयणीओ कुच्छी,
दो रनि की एक कुक्षी, दो कुच्छीओ दंड, धणू जुगे नालिया अक्खमुसले, दो कुक्षी का एक दण्ड, एक धनुष, एक युग, एक नालिका,
एक अक्ष तथा एक मूसल होता है । (सभी समानार्थक) दो धणुसहस्साई गाउयं,
दो हजार धनुष का एक गव्यूत होता है। चत्तारि गाउयाई जोयणं ।
चार गव्यूत (गाऊ) का एक योजन होता है। प०-एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं?
प्र०-इस आत्मांगुल प्रमाण से किस प्रयोजन की सिद्धि
होती है ? उ०-एएणं आयंगुलप्पमाणेणं जे णं जया मणुस्सा भवंति, उ०-जिस काल में जो मनुष्य होते हैं, उनके इस आत्मां
तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-बह-नदी-तलाग- गुल प्रमाण से इन सब का नाप किया जाता है-कूप, ह्रद, नदी, बावी-पुक्खरणी-बीहिया-गुजालियाओ, सरा सरपंति- तालाब, बाबड़ी, पुष्करिणी, (कमल युक्त जलाशय) दीपिका (लम्बी याओ सरसरपंतियाओ, बिलपंतियाओ;
बावड़ी) गुजालिका (वक्राकार बावड़ी) सर (प्राकृतिक जलाशय) सरपंक्ति, सरसरपंक्ति, बिल पंक्ति,
उक्त कथन के अनुसार १०८ आत्मांगुल की ऊँचाई वाला पुरुष प्रमाण होता है । द्रोणी पुरुष का अर्थ है-एक दोणी (जल कुण्ड-हौज) परिपूर्ण जल से भर लेने पर कोई पुरुष जब उसमें प्रवेश करे तो एक द्रोण प्रमाण जल बाहर निकल जावे, उस पुरुष का प्रमाण द्रोणिक मात्र अर्थात् उस पुरुष को प्रमाण पुरुष माना जाता है।
-अनुयोग. टीका