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________________ ७५४ लोक-प्रज्ञप्ति परिशिष्ट : माप-निरूपण सूत्र १०-११ प०-अलोयागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए किं- प्र०-भगवन् ! प्रदेशों की अपेक्षा से अलोकाकाश श्रेणियाँ क्या(१) कडजुम्माओ-जाव (२-४) कलियोगाओ? (१) कृतयुग्म है यावत्-(२-४) कल्योज हैं ? उ०-गोयमा ! (१) सिय कडजुम्माओ-जाव (२-४) सिय उ०-गौतम ! (१) कभी कृतयुग्म है-यावत्कलियोगाओ। (२-४) कभी कल्योज है। एवं पाईण-पडीणाययाओ वि । इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ भी हैं। एवं दाहिणुत्तराययाओ वि । इसी प्रकार दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियां भी हैं । उड्ढमहाययाओ वि एवं चेव । इसी प्रकार ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियाँ भी हैं। नवरं-नो कलियोगाओ । सेस तं चेव । विशेष-कल्योज नहीं है, शेष पूर्ववत् । -भग. स. २५, उ. ३, सु. ६५-१०७ सेढीणं सत्त भेया श्रेणियों के सात भेद११.५०-कति णं भंते ! सेढीओ पण्णताओ? प्र०-भगवन् ! श्रेणियाँ कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! सत्तसेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा उ०-गौतम ! श्रेणियाँ सात कही गई हैं, यथा(१) उज्जु आयता, (२) एगओ वंका, (३) दुहओ (१) ऋजु आयत, (२) एक ओर से वक्र, (३) दो ओर से वंका, (४) एगओ खहा, (५) दुहओ खहा, वक्र, (४) एक ओर से क्षत, (५) दो ओर से क्षत, (६) चक्रवाल, (६) चक्कवाला, (७) अद्धचक्कवाला । (७) अर्धचक्रवाल । -भग. स. २५, उ. ३, सु. १०८ परिशिष्ट :२ माव-निरुवणं माप-निरूपण खेत्तप्पमाण परूवणं क्षेत्र प्रमाण प्ररूपण१.५०-से कि तं खेत्तप्पमाणे ? १. प्र०-भगवन् ! वह क्षेत्र प्रमाण क्या है ? उ०-खेत्तप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा उ०-क्षेत्र प्रमाण दो प्रकार का कहा है । यथा(१) पदेसनिप्फणे य, (२) विभागनिष्फण्णे य । (१) प्रदेशनिष्पन्न और (२) विभागनिष्पन्न । ५०-से कि तं पदेसनिप्फण्णे? प्र०-प्रदेशनिष्पन्न का स्वरूप क्या है ? उ०-पदेसनिप्फणे-एग पदेसोगाढे-जाव-बस पदेसोगाढे उ-प्रदेश निष्पन्न का स्वरूप इस प्रकार है-एक प्रदेशा संखेज्जपदेसोगाढे, असंखेज्जपदेसोगाढे, से तं पएस वगाढ, (दो प्रदेशावगाढ)-यावत्-दस प्रदेशावगाढ, संख्यात निप्पण्णे । प्रदेशावगाढ तथा असंख्यात प्रदेशावगाढ । १०-से कि तं विभाग निष्फण्णे? प्र०—विभाग निष्पन्न का स्वरूप क्या है ? उ०-संगहणी गाहा उ०-(विभाग निष्पन्न अनेक प्रकार का है) यथा-संग्रहणी गाथा के अनुसार(१) अंगुल, (२) विहत्थी, (३) रयणी, (१) अंगुल, (२) वितस्ति (बैंत), (३) रत्नी, (४) कुक्षी, (४) कुच्छी , (५) धणु, (६) गाउयं च बोधव्वं । (५) धनु, (६) गाऊ (कोश), (७) योजन, (८) श्रेणी, (७) जोयण, (८) सेढी, (९) पयरं, (९) प्रतर तथा (१०) लोक-अलोक । (१०) लोगमलोगे वि य तहेव ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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